यहां युद्ध स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित करने और 1999 के करगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद उन्होंने कहा, ‘जम्मू कश्मीर में आईएसआईएस की कोई बड़ी आहट नहीं है। हां, हमने झंडा लहराने की घटनाएं देखी हैं।’ उन्होंने कहा, ‘यह चिंता का विषय है, हां यह है। क्योंकि आईएसआईएस एक ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा और विचारों का संगठन है जिसके बारे में हमें सुनिश्चित करना होगा कि यह कोई प्रभाव स्थापित न कर पाए और लोकतंत्र में इसकी कोई जगह नहीं है।’
हुड्डा ने कहा, ‘और इसलिए, हमारे लिए यह विचार करने का कारण है कि इस वैचिारिक युद्ध से कैसे लड़ा जाए और स्पष्टत: यह योजना है जिसके जरिए इससे लड़ा जाएगा। इसलिए हमारे लिए जो सुरक्षा से संबद्ध हैं और जो शासन से जुड़े हैं, हर किसी को एकजुट होना होगा तथा सुनिश्चित करना होगा कि यह खतरनाक संगठन भारत में पांव न पसार पाए।’
सैन्य कमांडर ने कहा कि क्षेत्र की ओर आईएसआईएस का बढ़ना चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, ‘हम इसे (क्षेत्र में आईएसआईएस की आहट) धीमे-धीमे देख रहे हैं। हम इसे अफगानिस्तान में पहले ही देख चुके हैं। आईएसआईएस और अफगान तालिबान के बीच संघर्ष की कई घटनाएं हुई हैं। आईएसआईएस अफगानिस्तान में कुछ प्रभाव हासिल करने की कोशिश कर रहा है। हम पाकिस्तान में संचालित टीटीपी के कुछ गुटों को भी देख चुके हैं जिन्होंने आईएसआईएस के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है।’
उन्होंने कहा, ‘ऐसी खबरें हैं कि पिछले साल, हमारे खुफिया आंकड़ों के अनुसार, करीब 60 स्थानीय युवक, जिनमें से अधिकतर दक्षिण कश्मीर से हैं, और इस साल करीब करीब 30..35 युवक आतंकवाद से जुड़े हैं। संख्या इतनी बड़ी नहीं है जो जम्मू कश्मीर में सुरक्षा परिदृश्य को बदल दे।’ कमांडर ने कहा, ‘लेकिन स्पष्टत:, यह चिंता का विषय है जब युवा लोगों ने धीरे-धीरे फिर से बंदूक पकड़ना शुरू कर दिया है क्योंकि दो-तीन साल पहले यह संख्या एकल आंकड़े- पांच, छह या सात में थी।’ लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने कहा कि प्रतिष्ठान को इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए रोजगार जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। (भाषा)