जम्मू-कश्‍मीर में परिसीमन पर बवाल, आसान नहीं है राह

सुरेश डुग्गर
बुधवार, 5 जून 2019 (16:09 IST)
केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर नए परिसीमन आयोग के गठन की योजना पर विचार शुरू करते ही रियासत की सियासत गरमाने लगी है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी इसके विरोध में खुलकर सामने आ गई हैं। वहीं, कांग्रेस परिसीमन को सही तो ठहरा रही है, लेकिन तर्कसंगतता का हवाला दे रही है।
 
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि भाजपा को तभी जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का स्वागत करना चाहिए जब यह देश के अन्य भागों में भी हो। अगर ऐसा नहीं होता है तो नेशनल कांफ्रेंस ऐसी किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध करेगी।

जम्मू-कश्मीर में जनता द्वारा निर्वाचित सरकार के बिना अगर कोई ऐसा करता है तो उसका विरोध होगा। हैरानी की बात है कि भाजपा जो अनुच्छेद 370 और 35-ए को भंग कर जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के समान बनाना चाहती थी, अब इस एक मामले में जम्मू-कश्मीर के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार कर रही है।
 
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन पर 2026 तक रोक पर राज्य उच्च न्यायालय और सर्वोच्‍च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने रोक को सही ठहराया। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने परिसीमन के किसी भी प्रयास का विरोध करने का एलान करते हुए अपने ट्‍विटर हैंडल पर लिखा है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में बदलाव की भारत सरकार की योजना के बारे में सुनकर परेशान हूं।
 
उन्होंने लिखा कि जम्मू-कश्मीर में जबरन परिसीमन का मतलब है, सांप्रदायिक आधार पर रियासत के लोगों की भावनाओं का विभाजन। पुराने जख्मों को भरने का मौका देने के बजाय भारत सरकार कश्मीरियों को और तकलीफ व जख्म दे रही है।
 
क्या है जनसंख्या और क्षेत्रफल का गणित : 2011 की जनगणना के मुताबिक जम्मू संभाग की आबादी 53,78,538 है, जो राज्य की 42.89 फीसदी आबादी है। जम्मू संभाग 26,293 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है यानी राज्य का 25.93 फीसदी क्षेत्रफ ल जम्मू संभाग के अंतर्गत आता है। यहां विधानसभा की कुल 37 सीटें हैं। कश्मीर की आबादी 68,88,475 है, जो राज्य की आबादी का 54.93 फीसदी हिस्सा है।
 
कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल राज्य के क्षेत्रफल 15,948 वर्ग किलोमीटर है, जो 15.73 प्रतिशत है। यहां से कुल 46 विधायक चुने जाते हैं। राज्य के 58.33 फीसदी (59146 वर्ग किमी) क्षेत्रफल वाले लद्दाख संभाग में चार विधानसभा सीटें हैं।
 
आखिरी बार 1995 में परिसीमन : ज्ञात हो कि राज्य में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब राज्यपाल जगमोहन के आदेश पर 87 सीटों का गठन किया गया। विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं, लेकिन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए रिक्त रखा गया है। शेष 87 सीटों पर चुनाव होता है।
 
वर्ष 2014 के चुनाव में घाटी के 46 विधानसभा में से केवल चार विधानसभा में बटमालू, कुपवाड़ा, सोपोर, बडगाम में एक लाख से अधिक वोटर थे। गुरेज में सबसे कम 17 हजार वोटर थे। जम्मू संभाग में भद्रवाह, रियासी, उधमपुर, रामनगर, कठुआ, हीरानगर, विजयपुर, गांधीनगर, जम्मू पश्चिम, राजोरी में एक लाख से अधिक वोटर थे। कश्मीर संभाग में 56.22 तो जम्मू में 76.67 फीसदी वोट पड़े थे।
 
क्या इतना आसान है परिसीमन : पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन व पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन ने कहा कि खुदा करे कि मीडिया में जो खबरें आ रही हैं, वह गलत साबित हों। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों? यह अतीत में हुई गलतियों को ही आगे बढ़ाएगा।
 
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट के चेयरमैन और पूर्व नौकरशाह शाह फैसल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों से पूर्व विधानसभा क्षेत्रों में बदलाव या उनकी संख्या घटाने-बढ़ाने की योजना पर अगर अमल होता है तो इसके रियासत मे अत्यंत खतरनाक परिणाम होंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस मामले में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
 
अगर बढ़ती आबादी के कारण परिसीमन की जरूरत महसूस हो रही है तो पहले राज्य विधानसभा का गठन होने दीजिए। चुनावों से पूर्व ऐसा कोई फैसला न संवैधानिक तौर पर सही है और नैतिक आधार पर। इससे तो राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में एक दूसरे के प्रति कटुता और अविश्वास की भावना ही पैदा होगी।
 
उन्होंने कहा कि राज्य के सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करना चाहिए, जो राज्य के सभी हितधारकों को नजरअंदाज कर किया जा रहा हो। पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन और पूर्व शिक्षा मंत्री हर्ष देव ने कहा कि सिर्फ परिसीमन क्यों, राज्य का पुनर्गठन होना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा कि परिसीमन हमारी पुरानी मांग है, जम्मू संभाग में आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए। कश्मीर घाटी में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए भी सीटें आरक्षित हों। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा ऐसा करेगी। यह इतना आसान भी नहीं है। संसद में कानून पारित करना होगा और उसके बाद ही परिसीमन आयोग बनेगा। एक बात ध्यान रखिए, इसके लिए संविधान में संशोधन भी करना पड़ेगा।
 
तब भाजपा का रुख और था : प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता और पूर्व एमएलसी रवीन्द्र शर्मा ने कहा कि भाजपा अगर ऐसा करती है तो अपना पुराना पाप धोएगी। कांग्रेस परिसीमन के हक में है, लेकिन यह तर्कसंगत तरीके से होना चाहिए। कांग्रेस चाहती है कि पहले परिसीमन हो और उसके बाद ही यहां विधानसभा चुनाव हों। लेकिन एक बात शायद भाजपा को याद नहीं है कि जब नेशनल कांफ्रेंस ने सत्ता में रहते हुए परिसीमन पर 2026 तक रोक लगाई थी तो उस समय भाजपा ने उसका साथ दिया था।
 
इतना ही नहीं, 2015 में जब भाजपा ने पीडीपी के साथ यहां सरकार बनाई थी तो उसने लिखकर दिया था कि वह परिसीमन की दिशा मे कोई कदम नहीं उठाएगी। लेकिन हमें भाजपा की नीयत पर शक है। यहां विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने यह शिगूफा छोड़ा है।
 

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