जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता का अपने पत्नी के साथ कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाने का इरादा था, जो कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निर्दयता है। हालांकि अदालत ने साफ कहा कि इसे IPC के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को खारिज करने का निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है कि महिला ने अपने पति के खिलाफ दहेज रोकथाम अधिनियम 1961 की धारा 4 और आईपीसी की धारा 498ए के तहत मामला कराया था। इसके खिलाफ पति ने कर्नाटक हाईकोर्ट की शरण ली। याचिकाकर्ता ने बताया कि वह अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारीरिक संबंध बनाने में विश्वास नहीं रखता है। शरीर के बजाय सिर्फ आत्मा के आत्मा से मिलन में उसका विश्वास है।
दंपति की शादी दिसंबर 2019 में हुई थी लेकिन शादी के बाद पत्नी सिर्फ 28 दिन ही ससुराल में रही। फरवरी 2020 में महिला ने आईपीसी की धारा 498ए और दहेज कानून के तहत मामला दर्ज कराया। महिला ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(ए) के तहत फैमिली कोर्ट में भी मामला दर्ज कराया था। इसके बाद दोनों की शादी को नवंबर 2022 में खत्म कर दिया गया।