Janmashtami 2020 : देशभर में जन्माष्टमी की रौनक, श्रीकृष्ण के जयकारों से गुंजायमान हुए मंदिर
बुधवार, 12 अगस्त 2020 (23:55 IST)
मथुरा। देशभर के श्रीकृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया गया। कोरोना संक्रमण के कारण भक्तों को मंदिरों में जाने की इजाजत नहीं थी। लेकिन महामारी के दौर में भक्तों की श्रद्धा में कोई कभी नहीं आई। भक्तों ने घर बैठकर ऑनलाइन भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए। रात के 12 बजते ही मंदिरों में शंख, घड़ियाल और मृदंग की ध्वनियां गुंजायमान होने लगीं। रात 12 बजते ही मंत्रोच्चार के बीच मंदिरों के कपाट खोले गए और कान्हा की मनोहारी छवि भक्तों ने अपने मन में उतारी। रात 12 बजते ही मथुरा से द्वारका तक मंदिरों में 'हाथी घोड़ा-पालकी, जय कन्हैयालाल की' गूंज उठा।
वृंदावन के 3 मंदिरों में बुधवार की सुबह ठाकुरजी का अभिषेक कर खुशियां मनाई गईं। इस बार कोरोना जैसी महामारी से बचाव के लिए जिला प्रशासन एवं मंदिरों की प्रबंध कमेटियों, संचालकों एवं प्रबंधकों ने आपस में मिल-बैठकर तय किया था कि मंदिरों में 10 से 13 अगस्त की सायंकाल तक किसी को भी दर्शन के लिए प्रवेश नहीं दिया जाए।
इस मौके पर मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया गया था, लेकिन मंदिरों की जगमगाती रोशनियां उनके दर्शनार्थियों के अभाव में कुछ फीकी-फीकी सी ही नजर आईं। कोरोना से बचाव के लिए जनता ने जन्माष्टमी के कार्यक्रम ऑनलाइन व सोशल मीडिया तथा टीवी चैनलों के माध्यम से कराए जा रहे सीधे प्रसारण को देखकर तथा घर में ही रहकर त्योहार मनाया।
मंदिरों की अद्भुत सजावट : मंदिरों की सजावट अद्भुत थी। पुष्प, लताएं, पत्ते, कलियां और बिजली के बल्ब की लड़ियां सब कुछ मिलकर बहुत सुन्दर छटा पैदा कर रही थी। किशन-कन्हैया को भी अलग-अलग नई सुन्दर पोशाक पहनाई गई थी, मोरपंख मुकुट और बांसुरी के साथ उनकी सज्जा काफी आकर्षक थी। जन्मोत्सव पर ठाकुरजी को रेशम, जड़ी और रत्न प्रतिकृति से बनी ‘पुष्प-वृंत’ पोशाक धारण कराई गई थी।
पंचामृत से अभिषेक : ठाकुरजी के जन्माभिषेक का मुख्य कार्यक्रम रात 11 बजे गणेश वंदना से प्रारंभ हुआ। उसके बाद नवग्रह पूजन हुआ। मध्य रात्रि को कान्हा के प्राकट्य के साथ संपूर्ण मंदिर परिसर में शंख, ढोल-नगाड़े, झांझ-मंजीरे, मृदंग बज उठे और उनकी आरती की गई। ठाकुरजी का पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसमें शास्त्रोक्त सामग्री एवं गंगा-यमुना के साथ-साथ इस बार विशेष रूप से सरयू के जल का भी उपयोग किया गया। यह जल श्रीराम एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान न्यासों के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास स्वयं लेकर आए थे।
स्मार्त संप्रदाय ने मंगलवार को मनाया जन्मोत्सव : मंगलवार को जहां स्मार्त संप्रदाय के मतावलंबियों ने जन्माष्टमी का पर्व मनाया, वहीं बुधवार को पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के मंदिर में जन्माष्टमी का आयोजन हुआ और ब्रज के घर-घर में श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर ठाकुरजी का 5248वां जन्मदिवस मनाया। वल्लभकुल द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के ठा. द्वारिकाधीश मंदिर में अजन्मे का जन्म बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
सुबह से शुरू हो गए अभिषेक : मंदिर के विधि एवं मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि प्रातःकाल सवा छह बजे ठाकुरजी के मंगलाचरण के पश्चात साढ़े छह बजे ठा. द्वारिकाधीश के श्रीविग्रह का भव्य पंचामृत अभिषेक हुआ। तत्पश्चात ठाकुरजी का श्रृंगार हुआ और फिर राजभोग के दर्शन खुले। उन्होंने बताया कि यह दर्शन उनके भक्त आभासी रूप में ही कर सके, जिनके लिए दूरदर्शन एवं विभिन्न टीवी चैनलों ने कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया।
स्थानीय लोगों ने बताया कि बुधवार को वृन्दावन के तीन मंदिर ऐसे भी थे, जहां मध्यरात्रि के स्थान पर दिन में ही ‘लाला’ का अभिषेक संपन्न करा दिया गया। उनका कहना है कि इन मंदिरों की मान्यता है कि यदि रात्रिकाल में ठाकुरजी को जगाया जाएगा तो यह माता यशोदा को अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि वे इसे उनकी नींद में व्यवधान डालने वाला कार्य मानती हैं।
इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए वृन्दावन के श्री राधादामोदर, श्री राधारमण और टेड़े खम्भों वाले शाहजी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व परम्परागत रूप से दिन में मना लिया गया। उसी समय उनका प्राचीन विधि-विधान से अभिषेक किया गया और फिर आरती कर भोग लगाया गया।
श्री राधादामोदर मंदिर के सचिव पूर्णचंद्र गोस्वामी ने इस परंपरा के पीछे एक और कारण बताया कि भक्तिकाल में जब भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु ने जब वृन्दावन की पुनर्स्थापना कर यहां सप्त देवालय स्थापित कराए तब उनके निर्देशानुसार उनके शिष्य जीव गोस्वामी सभी मंदिरों में सेवा-पूजा किया करते थे।
उन्होंने बताया कि वे इन सभी मंदिरों में आठों प्रहर सेवा-पूजा करने में बहुत अधिक थक जाया करते थे तो उन्होंने कुछ मंदिरों में जन्माष्टमी के दिन में और कुछ मंदिरों में रात में पूजा करने का नियम बना लिया। इन मंदिरों में जीव गोस्वामी की इसी परम्परा का पालन करते हुए यह प्रथा बन गई।
जबकि श्री राधारमण मंदिर के सेवायत सुमित गोस्वामी कहते हैं कि उदयात तिथि के अनुसार चूंकि इस वर्ष अष्टमी तिथि पूर्वाह्न साढ़े ग्यारह बजे तक ही रहेगी, इसलिए हमने उससे पूर्व ही अभिषेक आदि परम्पराओं का निर्वहन कर लिया।
इसी प्रकार शाहजी का मंदिर के प्रबंधक शाह प्रशांत कुमार ने बताया, मंदिर की प्राचीन परम्परानुसार हमने भी दिन में ही ठा. राधारमण के विग्रह का विधिपूर्वक तमाम शास्त्रोक्त के साथ पंचामृत से अभिषेक किया। लेकिन इस मौके पर हर वर्ष यहां आने वाले श्रद्धालुओं की कमी बहुत अधिक खली।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भागवत भवन, ठा. केशवदेव मंदिर, गर्भगृह व योगमाया मंदिर आदि में जन्माभिषेक की तैयारियां अंतिम दौर में थीं और पूरे मंदिर परिसर में झांझ-मजीरे, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि कान्हा के जन्म के उल्लास का आभास दे रही थी। (इनपुट भाषा)