'फादर्स डे' पर किताब लांच करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, मुझे उम्मीद है कि माताओं के साथ यह किताब पिता भी पढ़ेंगे, जिससे वे बच्चों की परवरिश के साथ-साथ पूरी पीढ़ी की परवरिश करने के बारे में भी जान सकेंगे। यह पुस्तक भारतीय मातृत्व की सर्वोत्तम परंपरा और एक मां की बहादुरी और सहनशक्ति का प्रतीक है। देश की तरह ऐसी माताओं को भी हमें नमन करना चाहिए।
किताब दिल को छू लेने वाली और दिल दहला देने वाली है। किताब का हर पन्ना भावुक करने वाला और आंखें नम करने वाला है। हर रोज कैसे एक भारतीय मां अपनी वीरता और बलिदान से देश की पीढ़ियों की रक्षा करने में सर्वस्व न्यौछावर कर देती है, यह पुस्तक इसी बात का एहसास कराती है।
लखनऊ विश्वविद्यालय से 1955 में पीएचडी की डिग्री लेने वाली पहली महिला का सम्मान पाने वाली डॉ. कृष्णा सक्सेना कहती हैं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं शिव के साथ अपने जीवन के बारे में लिख सकती हूं। लेकिन उम्र के साथ मुझे एहसास हुआ कि एक ऐसे बच्चे को आवाज देना भी मेरी जिम्मेदारी है, जिसकी अपनी कोई आवाज नहीं है और उसकी आवाज मेरी अपनी आवाज से इतनी उलझी हुई है कि यह किताब दो लोगों की एक आत्मकथा के रूप में सामने आई है।