प्रेस की आजादी और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे कुलदीप नैयर

गुरुवार, 23 अगस्त 2018 (12:12 IST)
नई दिल्ली। प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का बुधवार आधी रात के बाद यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। वरिष्ठ पत्रकार के बड़े बेटे सुधीर नैयर ने बताया कि उनके पिता की मौत कल आधी रात के बाद 12 बजकर 30 मिनट पर एस्कॉर्ट्स अस्पताल में हुई।

सुधीर नैयर ने बताया कि वे निमोनिया से पीड़ित थे और पांच दिन पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे हैं। नैयर का अंतिम संस्कार लोधी शवदाह गृह में गुरुवार दोपहर 1 बजे किया जाएगा। नैयर को प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले पत्रकार के रूप में जाना जाता है।

उन्होंने स्टेट्समैन सहित विभिन्न अखबारों में काम किया। वे 1990 में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त भी रहे और 1997 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। देश में लगे आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। नैयर ने भारत और पाकिस्तान के बीच के तनावपूर्ण संबंधों को भी सामान्य करने की लगातार कोशिश की। उन्होंने अमृतसर के निकट अटारी-बाघा सीमा पर कार्यकर्ताओं के उस दल का नेतृत्व किया था, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर वहां मोमबत्तियां जलाई थीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुलदीप नैयर को आज 'बुद्धिजीवी' बताया और कहा कि वरिष्ठ पत्रकार को उनके निर्भीक विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे उनके निधन से दुखी हैं। मोदी ने टि्वटर पर कहा कि कुलदीप नैयर हमारे समय के बुद्धिजीवी थे। अपने विचारों में स्पष्ट और निर्भीक। बेहतर भारत बनाने के लिए आपातकाल, जनसेवा और प्रतिबद्धता के खिलाफ उनका कड़ा रुख हमेशा याद किया जाएगा।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने पत्रकार के परिवार, उनके प्रशंसक और सहकर्मियों के प्रति संवेदनाएं प्रकट की हैं। ममता ने ट्वीट किया कि निडर पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर की मौत से दुखी हूं, मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, प्रशंसक और सहकर्मियों के साथ हैं। 'द वीक' मैगजीन के संपादक सच्चिदानंद मूर्ति ने नैयर को प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले पत्रकार के रूप में याद किया है।

मूर्ति ने कहा कि उन्होंने राजीव गांधी सरकार द्वारा लाए गए विवादित मानहानि विधेयक का विरोध किया था। भारत में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए वे सदैव काम करते रहे। नैयर ने ‘बियॉन्ड द लाइन्स : एन ऑटोबायोग्राफी' और ‘बिटवीन द लाइन्स’ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।

इसके अलावा उन्होंने भारतीय राजनीति से संबंधित कई किताबें लिखीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रतिष्ठित स्तंभकार थे और उन्होंने 50 से ज्यादा अखबारों में संपादकीय लिखे हैं।  उनका जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 1923 में हुआ था और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उर्दू अखबार से की थी। (भाषा)(Photo courtesy : Doordarshan News twitter)

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