आजादी के बाद बिहार की राजनीति अगर देश में बड़े आंदोलन के अगर जानी जाती है तो अब 21वीं सदी की बिहार की राजनीति नीतीश कुमार की पलटी मारने के लिए जानी जाए तो कोई अचरज नहीं होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीति में छठवीं बार पलटी मारने जा रहे है। बिहार में लालू की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के साथ सरकार चला रहे नीतीश ने एक बार फिर पलटी मारने जा रहे है और भाजपा से हाथ मिलना चाह रहे है।
पलटी मार नीतीश 9वीं बार लेंगे मुख्यमंत्री की शपथ?–बिहार में जेपी आंदोलन से निकले हुएनीतीश कुमार अपने 40 साल के सियासी सफर में पलटी मारने के लिए जाने पहचाने जाते है। नीतीश कुमार पलटी मारने की अपनी छवि से बगैर समझौता किए हुए बीते 17 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। नीतीश कुमार अपनी पलटी मारने की सियासत में इतने माहिर है कि उनके बारे में राजनीति के बड़े जानकारी भी पूर्वानुमान नहीं लगा सकते है। नीतीश कुमार छठवीं बार पलटी मारने जा रहे है और 9वीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ले सकते है।
नीतीश कुमार ने बिहार में 2020 का विधानसभा चुनाव एनडीए के एक सहयोगी के तौर पर भाजपा के साथ लड़ा था। चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को महज 45 सीटे मिली थी और वह विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी लेकिन नीतीश सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने मे कामयाब हो गए थे और भाजपा ने 78 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था।
भाजपा के साथ नीतीश कुमार का साथ बहुत दिन नहीं चला और अगस्त 2022 में वह महागठबंधन में शामिल हुए और 10 अगस्त 2022 को बिहार के आठवीं बार मुख्यमंत्री बने। नीतीश ने लालू की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर सरकार बनाई। 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी 79 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। लालू के साथ नई दोस्ती के 15 महीने के अंदर ही नीतीश का मन भर गया और वह अब एक बार फिर भाजपा के साथ जा रहे है और 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते है।
नीतीश के जरिए BJP की नजर लोकसभा चुनाव पर-लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए में वापसी करने जा रहे है। 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA ने बिहार में नीतीश के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी और राज्य की कुल 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में अब नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले NDA में लौट रहे है तो तो इसका बड़ा कारण लोकसभा चुनाव है। भाजपा लोकसभा चुनाव में बिहार में कोई चूक नहीं करना चाह रही है इसलिए वह चुनाव से पहले नीतीश कुमार को अपनाने जा रहे है।
दरअसल बिहार में नीतीश कुमार ने जो जातीय जनगणना का कार्ड खेला है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने हर मंच से जातीय जनगणना का वादा कर रहे है उससे भाजपा कहीं न कहीं बैकफुट पर नजर आ रही है, ऐसे में ओबीसी का राजनीति को साधने के लिए भाजपा नीतीश कुमार को एक बार फिर गले लगाने के लिए तैयार है।
इसके साथ बिहार में लोकसभा चुनाव और 2025 मे होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का दांव भी चल दिया। सरकार के इस फैसले के बाद राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 25 फीसदी, अनुसूचित जाति को 20 और अनुसूचित जनजाति को 2 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़े यानी ईडब्लूएस को 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। इस प्रकार राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो गया है।
नीतीश से मात खा जाएंगे लालू?- अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने अपने पुराने साथी लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, वहीं अब 15 महीन के बाद जब नीतीश कुमार पलटी मारने जा रहे है तो सवाल यहीं है कि क्या नीतीश कुमार के इस दांव से बिहार की सियासत के चाणक्य लालू प्रसाद यादव मात खा जाएंगे। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव ने अपनी ओर से नीतीश कुमार को मानने मेंं पुरजोर कोशिश की। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव ने खुद नीतीश कुमार को फोन कर मनाने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम दिखाई दी।
बिहार की सियासत जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे लालू की पार्टी अब तीखे तेवर अपनाते हुए दिख रही है। बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया है कि वह इतनी आसानी से राज्य में ताख्ता पलट नहीं होने देंगे। ऐसे में जब बिहार विधानसभा का अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पार्टी का है तो क्या विधानसभा में लालू यादव अपने गेमप्लान दिखाएंगे इस पर सभी की नजरें है।