सुसाइड नोट में उनकी अंतिम इच्छा थी कि समाधी श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी पार्क में नीबू के पेड़ के पास गुरू जी के बगल दी जाए। अखाड़े के बड़े संत और महात्माओं ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उसी स्थान पर वेद मंत्रो के साथ सभी 13 अखाडों के बड़े संत, महंत और साधु-सहतों की उपस्थिति में भू-समाधि दी गई।
महंत को 12 फिट के गढ्ढे में तैयार गुप्त द्वारनुमा स्थान में 'सिद्ध योग मुद्रा' में घंटे-घडियाल और मंत्रोचार के बीच समाधि में बैठाया गया। विभिन्न अखाड़ों के महामंडलेश्वर, आचार्य और बड़े महात्माओं ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि और माल्यार्पण किया। उनके पास उनके नित्य पूजा की अपयोग की सभी वस्तुओं को रखा गया।
महंत के भू समाधि में अखाड़ों के महामंडलेश्वर, आचार्य और बड़े संत महात्माओं ने वैष्णव सम्प्रदाय के परंपराओं को ध्यान में रखकर विधि विधान का पालन करते हुए शंखनाद के बीच क्रमश: पुष्प, नमक, चीनी, घी, दूध, बेलपत्र पंचामृत आदि भू समाधि डाले गये। एक लंबी प्रक्रिया के बाद अखाड़े से जुडे सभी लोगों ने मिट्टी से गढ्डे को ढ़कने की प्रकिया पूरी की। अंत में समाधि स्थल को गोबर से लेपन किया गया। इन सभी कार्यों में करीब दो घंटे का समय लगा। इस दौरान महंत नरेन्द्र गिरी की जयजयकार की जा रही थी।