उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी, पूरे देश की, करीब 90 प्रतिशत लकड़ी की पट्टी की मांग को पूरा करती है, और उसमें बहुत बड़ी हिस्सेदारी पुलवामा की है। एक समय में हम लोग विदेशों से पेंसिल के लिए लकड़ी मंगवाते थे, लेकिन अब हमारा पुलवामा, इस क्षेत्र से, देश को आत्मनिर्भर बना रहा है।
मोदी ने कहा कि वास्तव में पुलवामा के ये पेंसिल स्लेट राज्यों के बीच की दूरी को कम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि घाटी की चिनार की लकड़ी में नमी की अच्छी मात्रा और मुलायमपन है, जो पेंसिल के निर्माण के लिए उसे सबसे उपयुक्त बनाती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलवामा में, उक्खू को, ‘पेंसिल गाँव’ के नाम से जाना जाता है। यहां पेंसिल निर्माण की कई इकाइयां हैं, जो रोजगार उपलब्ध करा रही हैं, और इनमें काफ़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं।
मोदी ने लकड़ी काटने वाले मज़दूर मंज़ूर अहमद अलाई का ज़िक्र करते हुए कहा कि मंजूर भाई कुछ नया करना चाहते थे ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियां ग़रीबी में ना जिएं। उन्होंने, अपनी पुस्तैनी जमीन बेच दी और सेब रखने वाले लकड़ी के बक्से बनाने की यूनिट शुरू की। मंजूरजी को पता चला कि पेंसिल निर्माण में चिनार की लकड़ी का उपयोग शुरू किया गया है।
ये जानकारी मिलने के बाद, मंजूर भाई ने अपनी उद्यमिता का परिचय देते हुए कुछ प्रसिद्ध पेंसिल निर्माण इकाइयों को चिनार की लकड़ी की आपूर्ति शुरू कर दी। मंजूरजी को ये बहुत फायदेमंद लगा और उनकी आमदनी भी अच्छी-ख़ासी बढ़ने लगी। समय के साथ उन्होंने पेंसिल स्लेट की निर्माण की मशीनें ले लीं और उसके बाद उन्होंने देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों को पेंसिल स्लेट की आपूर्ति शुरू कर दी। आज उनका व्यवसाय करोड़ों में है और वे लगभग 200 लोगों को आजीविका भी दे रहे हैं।