उन्होंने कहा, 'एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी। अख़बारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था।'
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र एक व्यवस्था है और एक संस्कार भी है। इसके प्रति नित्य जागरूकता जरूरी है। लोकतंत्र को आघात पहुंचाने वाली बातों को भी स्मरण करना होता है और लोकतंत्र की अच्छी बातों की दिशा में आगे बढ़ना होता है। उन्होंने युवाओं और लोकतंत्र प्रेमियों का आह्वान किया कि वे लोकतंत्र के संरक्षण के लिए हमेशा सजग रहें।
उन्होंने कहा, 'आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए।'