भारत में करीब 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव होने जा रहा है। आखिर नई शिक्षा नीति का क्या असर होगा, विद्यार्थियों को इसका क्या लाभ होगा? इसी तरह के कई सवाल हैं, जो न सिर्फ विद्यार्थियों बल्कि उनके अभिभावकों के मन में भी घुमड़ रहे हैं। हालांकि माना जा रहा है कि नई शिक्षा नीति के बाद कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहेगा साथ ही यह देशवासियों को जड़ों से जोड़ने का काम भी करेगी। साथ ही इसे वन नेशन, वन एजुकेशन सिस्टम की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
इसी संबंध में वरिष्ठ शिक्षाविद और मानव संसाधन मंत्रालय के तकनीनी शब्दावली आयोग के विषय विशेषज्ञ डॉ. अवनीश पांडे ने वेबदुनिया में बातचीत इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई है। इससे परंपरागत शिक्षा के साथ ही मूल्य आधारित शिक्षा भी बच्चों को मिलेगी। साथ ही इसमें 3 से 18 साल तक बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई है। स्वाभाविक रूप से कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहेगा।
घटेगी बेरोजगारी : डॉ. अवनीश कहते हैं कि 10+2 खत्म करके अब 5+3+3+4 पद्धति लागू की जाएगी। नया सिलेवस भी तैयार हो रहा है। छठी क्लास से ही बच्चे को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी, जिसमें गार्डनिंग, कारपेंटर, कंप्यूटर आदि की शिक्षा शामिल है। जब विद्यार्थी 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करेगा तो उसके साथ एक हुनर भी जुड़ा रहेगा। किसी कारणवश यदि वह शिक्षा आगे जारी नहीं रख पाता है तो उसके आधार पर उसे रोजगार मिलने मेंं आसानी होगी।
दूर होगा तनाव : डॉ. पांडे कहते हैं कि आमतौर पर देखने में आता है कि परीक्षा परिणाम की घोषणा के साथ ही देशभर विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या की खबरें भी प्रमुखता से सामने आती हैं। क्योंकि वर्तमान पद्धति में बच्चे पर अधिक अंक लाने का स्कूल से लेकर घर तक दबाव होता है। कई बार जब बच्चा अच्छे अंक नहीं ला पाता तो तनाव में घातक कदम उठा लेता है।
दरअसल, नई शिक्षा नीति के बाद 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षा में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। परीक्षा को ऑब्जेक्टिव और डिस्क्रिप्टिव श्रेणियों में विभाजित किया गया है। परीक्षा का उद्देश्य ज्ञान का परीक्षण होगा। इससे रटने की प्रवृत्ति दूर होगी तथा बच्चा मानसिक दबाव से भी मुक्त होगा।
उन्होंने बताया कि स्कूल में बच्चों के प्रदर्शन के आकलन के लिए रिपोर्ट कार्ड में बदलाव किया गया है। इसे तीन स्तर पर बनाया गया है, जो कि अभी तक नहीं था। एक स्तर पर स्टूडेंट खुद अपना आकलन करेगा, दूसरा सहपाठी करेगा तथा तीसरा शिक्षक करेगा। इन सबको मॉनिटर करने के लिए नेशनल असेसमेंट सेंटर भी बनाया गया है।
डॉ. अवनीश बताते हैं कि सबसे खास यह है कि अब बच्चे को सब्जेक्ट चुनने की पूरी आजादी रहेगी। अब यदि बच्चा चाहेगा तो वह गणित और साइंस के साथ इतिहास या फैशन डिजाइनिंग भी पढ़ सकेगा। जबकि, वर्तमान में ऐसा नहीं है। इससे साइंस और आर्ट्स विषय के बीच की खाई भी दूर होगी। नई शिक्षा नीति ड्रॉपआउट्स बच्चों के लिए भी लाभदायक साबित होगी। देश के सभी जिलों में खेल और करियर, आर्ट एंड क्रॉफ्ट के लिए 'बाल भवन' बनाए जाएंगे। जहां इस तरह की ट्रेनिंग दी जाएगी।
उच्च शिक्षा के विषय पर चर्चा करते हुए डॉ. अवनीश पांडेय कहते हैं कि इंजीनियरिंग की शिक्षा में कई बार ऐसा देखने में आता है कि बच्चा बीच में ही शिक्षा छोड़ देता है। ऐसे में यदि वह एक साल पूरा करता है तो उसे सर्टिफिकेट मिलेगा, जबकि दो साल पूरे होने पर डिप्लोमा मिलेगा। ग्रेजुएशन 3 और 4 साल का हो जाएगा। जिसे मास्टर कोर्स में प्रवेश लेना है अथवा शोध कार्य करना है उसे 4 साल की डिग्री करनी होगी। मास्टर डिग्री भी एक साल की हो जाएगी।
विश्वविद्यालयों के लिए एक ही नियम : उन्होंने बताया कि यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई खत्म हो जाएंगी। इसके बाद एक सिंगल रेग्युलेटरी (नियामक आयोग) बन जाएगा। एडमिशन और कॉमन एंट्रेस के लिए एक ही राष्ट्रीय एजेंसी बनेगी। ऑनलाइन एजुकेशन के साथ ही शिक्षा को रोचक बनाने के लिए ऑडियो-विजुअल पर ज्यादा जोर रहेगा। सभी यूनिवर्सिटी एक ही नियम से संचालित होंगी। सेंट्रल यूनिवर्सिटी, डीम्ड यूनिवर्सिटी और स्टेंड अलोन इंस्टीट्यूशन अलग-अलग नियम नहीं बना सकेंगे।
स्थानीय भाषा पर जोर : नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा, क्षेत्रीय भाषा और राष्ट्रीय भाषा पर ज्यादा जोर रहेगा। इन्हें बढ़ावा भी मिलेगा। नई शिक्षा नीति कॉमन रहने के साथ ही अंग्रेजी की अनिवार्यता भी समाप्त हो जाएगी। हालांकि भाषाएं थोपी नहीं जाएंगी, वे विकल्प के तौर पर उपलब्ध रहेंगी। त्रिभाषा फार्मूले के तहत स्कूल के साथ ही उच्च शिक्षा में संस्कृत को चुनने का विकल्प विद्यार्थी के पास रहेगा।
शिक्षक बनने की प्रक्रिया होगी जटिल : नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद शिक्षक बनना आसान नहीं होगा। इसके बाद शिक्षकों के लिए कई तरह की लिखित परीक्षाओं के सात साक्षात्कार भी होंगे। जो शिक्षक अभी हैं उन्हें भी अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाएंगी। डॉ. अवनीश कहते हैं कि स्पोर्ट्स, खेल, योग, मार्शल आर्ट, वागवानी जैसे कई विषयों को स्थानीय स्तर पर शिक्षकों एवं सुविधाओं की उपलब्धता के आधार पर ही शामिल किया जाएगा।
डॉ. पांडे कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि शिक्षा व्यवसाय और कौशलपरक होगी तो निश्चित ही रोजगार के अवसर और ज्यादा उत्पन्न होंगे। इसके साथ ही कॉमन एंट्रेंस एक्जाम होगी, इसके लिए एक एजेंसी जिम्मेदार होगी। पेपर लीक होने की स्थिति लीपापोती नहीं हो सकेगी। इसे वन नेशन, वन एजुकेशन की दिशा में भी बड़ा कदम माना जा सकता है।