पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया। चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी की सजा सुजाई जाएगी। जानिए क्या होता है डेथ वारंट...
क्या होता है डेथ वारंट : दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) का फॉर्म नंबर 42 दोषी को फांसी की सजा का अनिवार्य आदेश है। इसे डेथ वारंट या ब्लैक वारंट कहा जाता है। इसे 'वारंट ऑफ एक्जीक्यूशन ऑफ ए सेंटेंस ऑफ डेथ' भी कहा जाता है। किसी भी अपराधी को जिसे अदालत ने मृत्युदंड दिया है, फांसी से पहले अदालत डेथ वारंट जारी करती है। इस वारंट के बिना किसी भी कैदी को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती।
कब जारी होता है डेथ वारंट : डेथ वारंट फांसी की सजा से 2 हफ्ते पहले जारी किया जाता है। डेथ वारंट जारी करने से पहले जज दोषी या उसके वकील से बात करता है। दोषी को बता दिया जाता है कि उसे फांसी की सजा कब दी जाएगी। इससे वह व्यक्ति जिसे फांसी की सजा दी जा रही है, खुद से मानसिक रूप से इसके लिए तैयार कर लेता है।
किसे भेजा जाता है डेथ वारंट : डेथ वारंट जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजा जाता है, जहां मृत्युदंड की सजा पाए दोषी को कैद करके रखा जाता है। इस वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है।
क्या होता है इस फॉर्म में : इस वारंट में जेल का नंबर, फांसी पर चढ़ाए जाने वाले सभी कैदियों के नाम, केस नंबर के साथ ही दोषी को फांसी देने की तारीख, समय और स्थान का भी जिक्र होता है। साथ ही ब्लैक वारंट में उस जज के हस्ताक्षर भी होते हैं, जिसने दोषी को मौत की सजा सुनाई होती है।
ब्लैक वारंट में यह भी लिखा होता है: दोषी को 'तब तक फांसी के फंदे पर लटकाकर रखा जाए, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए'। यह वाक्य क्रिमिनल प्रोसीजर के फॉर्म नंबर 42 पर छपे तीन वाक्यों के दूसरे भाग का हिस्सा है, जिसे ब्लैक वारंट के नाम से जाना जाता है।