संसद का पूरा बजट सत्र अब हंगामे की भेंट चढता दिख रहा है। अडानी-हिडनबर्ग और लंदन में राहुल गांधी के लोकतंत्र वाले बयान पर संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यससभा में हंगामा जारी है। संसद में जहां विपक्ष अडानी मामले पर अड़ा है वहीं सत्ता पक्ष राहुल गांधी की माफी की मांग पर ऐसे में संसद में एक डेडलॉक की स्थिति बन गई है और बजट सत्र का हर दिन हंगामे के भेंट चढ़ रहा है। सोमवार को भी संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही शुरु होते ही हंगामा देखने को मिला, इसके बाद कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया।
विपक्ष और सत्ता पक्ष में हंगामे की होड़!-संसद के बजट सत्र का पहला भाग अडानी मामले पर ठप रहा है। बजट के पहले सत्र में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने अडाणी मामले को लेकर संसद का काम ठप किया। वहीं होली के बाद दूसरे भाग में विपक्ष अडाणी मामले पर जेपीसी के गठन की मांग को लेकर अड़ा है। तो वहीं सत्ता पक्ष राहुल गांधी के लंदन में दिए बयान पर विपक्ष को घेर रहा है और हंगामा कर रहा है।
लंदन में राहुल गांधी के लोकतंत्र पर दिए बयान पर होली के बाद संसद के बजट सत्र का दूसरा भाग में लगातार हंगामा हो रहा है। खास बात यह है कि बजट सत्र के पहले भाग में जहां विपक्ष अडानी मामले पर सरकार पर हमलावर था तो अब दूसरे भाग में सरकार विपक्ष पर हमलावर है। ऐसे में जब संसद का पिछल सप्ताह पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया है तो वहीं रविवार को कांग्रेस के सावरकर समझा क्या...नाम-राहुल गांधी है वाले ट्वीट ने साफ कर दिया है कि संसद में आगे की पिक्चर क्या होगी?
अडानी मामले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जांच कमेटी बनाए जाने के बाद सरकार संसद में झुकती हुई नहीं दिख रही है वहीं राहुल गांधी के साथ कांग्रेस ने भी साफ कर दिया है कि वह अपने बयान पर माफी नहीं मांगेगे। ऐसे में संसद में बना डेडलॉक टूटने की संभावना नहीं के बराबर है।
कई सत्र चढ़ चुके है हंगामे की भेंट-ऐसा नहीं है कि संसद का मौजूदा सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। अगर पिछले कुछ सालों के संसद के सत्र पर नजर डाली जाए तो पाते है कि सत्र की शुरुआत से हंगामे के साथ होती है और जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे की बर्बादी के साथ सत्र खत्म होता है। कोरोना काल में जब संसद का सत्र पेगासस जासूसी कांड पर हंगामे की भेंट चढ़ गया है तो संसद का 2022 का मानसून सत्र संसद सचिवाल के उस विवादित सर्कुलर की भेंट चढ़ा था जिसमें संसद परिसर में धरना प्रदर्शन प्रतिबंधित किया गया था। वहीं संसद का पिछली शीतकालीन सत्र (दिसंबर-2022) अरुणाचल के तवांग में भारत- चीनी सैनिकों के झड़प और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के भाजपा को लेकर विवादित बयान को लेकर हंगामे की भेंट चढ़ा था।
लोकसभा टीवी से रिसर्च की डेटा के मुताबिक संसद के बजट सत्र का दूसरा भाग जब पिछले सप्ताह 13 मार्च को शुरु हुआ तो 13 मार्च को 9 मिनट, 14 मार्च को 4 मिनट, 15 मार्च को 4 मिनट, 16 मार्च को 3.30 मिनट और 17 मार्च को करीब 22 मिनट ही सदन की कार्यवाही चल पाई, यानि एक सप्ताह में मात्र 42 मिनट संसद की कार्यवाही चल पाई जिसको चलना था औसतन 45 घंटे।
हंगामे की भेंट चढ़ रही जनता की गाढ़ी कमाई!-संसद के एक के बाद सत्र के हंगामे की भेंट चढ़ने से जहां कामकाज प्रभावित हो रहा है वहीं जनता से जुड़े मुद्दों पर संसद में बहस भी नहीं हो पा रही है। पिछले कई सत्रों से देखने को मिल रहा है कि सदन शुरु होने से पहले अचानक कोई मुद्दा सामने आता है और संसद की पूरी कार्यवाही उसके भेंट चढ़ जाती है। इनमें चाहे पेगासस जासूसी मामले का खुलासा हो या अडानी पर हिडनबर्ग की रिपोर्ट।।
संसद में लगातार हंगामा होने से जनता की गाढ़ी कमाई भी एक तरह से बर्बाद हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर 2.50 लाख रुपए और एक घंटे की कार्यवाही पर 1.5 करोड़ रुपए खर्च होते है। वहीं संसद सत्र के दौरान एक दिन का खर्चा 9 करोड़ रुपए के आसपास आता है। संसद की कार्यवाही के दौरान सबसे अधिक खर्च सांसदों के वेतन,सत्र के दौरान सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते, सचिवालय के कर्मचारियों की सैलरी और संसद सचिवालय पर किए जाते हैं।
असल में लोकतंत्र में संसद वह मंच है जहां जनहित के मुद्दों को विपक्ष उठाकर और उस पर बहस कर सरकार का ध्यान उस मुद्दें की ओर आकृष्ट करता है और संसद में होने वाली बहस से सरकार पर एक दबाव भी बनता है।
सत्र दर सत्र हंगामे की भेंट चढ़ती संसद देश की जनता के लिए भी चिंता का विषय है। संसद में हर दिन होने वाले हंगामे से देश के ज्यादातर लोग निराश हैं। उन्हें लगता है कि उनसे जुड़ी समस्याओं और राष्ट्रीय महत्व के विषय पर संसद में चर्चा हो पाएगी या नहीं।