कितना सही है कर्मचारियों को समय से पहले रिटायरमेंट का फैसला?

शनिवार, 5 सितम्बर 2020 (18:37 IST)
-वेबदुनिया न्यूज डेस्क
सरकारी कर्मचारियों को समय से पहले सेवानिवृत्त (Pre-michor retirement) देने के केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। कर्मचारी संगठन जहां सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं प्रबुद्धजनों और कर्मचारी संगठन के नेताओं का मानना है कि सरकार का यह कदम पूरी तरह अनुचित है। सरकार से इस फैसले को तत्काल वापस लेने की मांग भी की जा रही है। 
 
दरअसल, केंद्र सरकार ने साफ किया है कि सार्वजनिक हित में केंद्रीय कर्मचारियों को समय से पहले रिटायर किया जा सकता है। अर्थात सरकार 50-55 साल की आयु या फिर नौकरी में 30 वर्ष पूरा कर लेने वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति देने का अधिकार है। इतना ही नहीं एफआर 56 (जे) और सीसीएस (पेंशन) रूल्‍स 1972 के रूल 48 के मुताबिक, जिन कर्मचारियों को सेवा में बने रहने की मंजूरी मिली है, उन्हें भी रिव्यू का सामना करना पड़ सकता है।
 
इस बीच, कर्मचारी संगठन सरकार के इस फैसले के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। वहीं प्रबुद्धजनों ने भी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। विभिन्न कर्मचारी संगठन सरकार के इस फैसले के खिलाफ सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव और कई राज्यों में होने वाले उपचुनावों से पहले भाजपा सरकार के लिए यह फैसला मुश्किल का सबब बन सकता है।  
 
वरिष्ठ अभिभाषक और समाजसेवी अनिल त्रिवेदी कहते हैं कि केन्द्र सरकार का 50 वर्ष से ज्यादा की आयु के कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का विचार पूरी तरह असंवैधानिक है। यह विचार मनमाना और भेदभावपूर्ण है। केन्द्र सरकार के सेवा नियमों में आज भी यह व्यवस्था है कि कोई कर्मचारी यदि कदाचरण अनियमितता या कार्य संपादन में लापरवाही करता है तो उसे आरोप पत्र देकर विभागीय जांच के बाद ही दोष सिद्ध होने पर ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है। 
 
यह प्रावधान होते हुए भी मात्र 50 वर्ष की आयु के आधार पर सेवानिवृत्ति की नीति संविधान के तहत प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का खुला हनन है। अक्षमता और आयु दो अलग-अलग बातें हैं। आयु को आधार बनाना संविधान की मूल भावना व मूलभूत अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
 
त्रिवेदी कहते हैं कि केन्द्र सरकार संविधान के अनुसार ही काम कर सकती है। संविधान को अमान्य कर मनमाने नियम और नीति न तो बनाए जा सकते हैं न ही लागू किए जा सकते हैं। अक्षमता या कदाचरण का आरोप सेवा काल में वैसा अवसर उपस्थित होने पर कभी भी लगाया जा सकता है और वह पूरी तरह सिद्ध होने पर ही दंडित करने की कार्यवाही करना  संभव है अन्यथा नहीं।
 
वहीं, आल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन आलोक खरे का मानना है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के पूर्व नौकरी से निकालना एक कठोर कार्रवाई है, जिसका असर उसके परिवार पर निश्चित रूप से पड़ेगा। यह ऐसी उम्र होती है जबकि व्यक्ति पर परिवार की जिम्मेदारी भी सर्वाधिक होती है। ज्यादा अच्छा होगा कि उनकी गुणवत्ता सुधारी जाए जाए, उन्हें टेक्नोलॉजी आदि का प्रशिक्षण देने के साथ ही उनका मार्गदर्शन और काउंसलिंग भी की जा सकती है। 
आलोक खरे कहते हैं कि जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो निश्चित ही ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय जांच करवाई जा सकती है। साथ ही जांच के बाद उसे दंडित किया जा सकता है। अर्थात भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ तो वर्तमान नियमों के तहत भी कार्रवाई का विकल्प सरकार के पास हमेशा खुला है। ऐसे में किसी भी कर्मचारी को समय से पहले रिटायरमेंट देना पूरी तरह अनुचित है।

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