प्रधानमंत्री मोदी बोले- 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' देश की जरूरत

गुरुवार, 26 नवंबर 2020 (22:12 IST)
केवडिया (गुजरात)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को एक राष्ट्र, एक चुनाव (वन नेशन, वन इलेक्शन) को केवल विचार-विमर्श का मुद्दा नहीं बल्कि देश की जरूरत बताया और कहा कि इस बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।

मोदी यहां वीडियो कॉन्‍फ्रेंस के माध्यम से पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। दो दिन का यह सम्मेलन बुधवार को शुरू हुआ था जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था।

मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कहा, वन नेशन, वन इलेक्शन सिर्फ चर्चा का विषय नहीं है बल्कि यह भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में भारत में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में एक देश, एक चुनाव पर गहन मंथन आवश्यक है।उन्होंने कहा कि इसमें पीठासीन अधिकारी काफी मार्गदर्शन कर सकते हैं और अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर लोकसभा, विधानसभा या पंचायत चुनावों के लिए केवल एक मतदाता सूची का उपयोग किए जाने की वकालत की।उन्होंने कहा, इसके लिए रास्ता बनाना होगा। हम इन सब पर समय और पैसा क्यों बर्बाद कर रहे हैं?

उन्होंने संसद और विधानसभाओं के डिजिटलीकरण पर भी बल दिया और इस दिशा में कदम उठाने को कहा। उन्होंने कहा,  डिजिटाइजेशन को लेकर संसद में और कुछ विधानसभाओं में कुछ कोशिशें हुई हैं लेकिन अब पूर्ण डिजिटाइजेशन का समय आ गया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के मूल्‍यों का प्रसार किया जाना चाहिए।उन्‍होंने कहा कि जिस तरह केवाईसी- नो योर कस्‍टमर डिजिटल सुरक्षा की कुंजी है, उसी तरह केवाईसी-नो योर कांस्टिट्यूशन, संवैधानिक सुरक्षा की बड़ी गारंटी हो सकता है।

मोदी ने कहा कि हमारे कानूनों की भाषा बहुत सरल और आमजन के समझ में आने वाली होनी चाहिए ताकि वे हर कानून को ठीक से समझ सकें। उन्‍होंने कहा कि पुराने पड़ चुके कानूनों को निरस्‍त करने की प्रक्रिया भी सरल होनी चाहिए।
 
उन्‍होंने सुझाव दिया कि एक ऐसी प्रक्रिया लागू की जाए जिसमें जैसे ही हम किसी पुराने कानून में सुधार करें, तो पुराना कानून स्‍वत: ही निरस्‍त हो जाए।
 
आपातकाल का उल्‍लेख करते हुए मोदी ने कहा कि 1970 के दशक का यह प्रयास सत्‍ता के विकेन्‍द्रीकरण के प्रतिकूल था लेकिन इसका जवाब भी संविधान के भीतर से ही मिला।

उन्होंने कहा, संविधान में सत्‍ता के विकेन्‍द्रीकरण और उसके औचित्‍य की चर्चा की गई है। आपातकाल के बाद इस घटनाक्रम से सबक लेकर विधायिका, कार्यपालिका और न्‍यायपालिका आपस में संतुलन बनाकर मजबूत हुए।प्रधानमंत्री ने कहा कि यह इसलिए संभव हो सका, क्‍योंकि 130 करोड़ भारतीयों का सरकार के इन स्‍तंभों में भरोसा था और यही भरोसा समय के साथ और मजबूत हुआ।

कर्तव्‍य पालन के महत्‍व पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि कर्तव्‍य पालन को अधिकारों, गरिमा और आत्‍मविश्‍वास बढ़ाने वाले महत्‍वपूर्ण कारक की तरह लिया जाना चाहिए।उन्‍होंने कहा, हमारे संविधान की बहुत सारी विशेषताएं हैं, लेकिन उनमें से एक विशेषता कर्तव्‍य पालन को दिया गया महत्‍व है।

महात्‍मा गांधी इसके बहुत बड़े समर्थक थे। उन्‍होंने पाया कि अधिकारों और कर्तव्‍यों के बीच बहुत निकट संबंध है। उन्‍होंने महसूस किया कि जब हम अपना कर्तव्‍य पालन करते हैं, तो अधिकार खुद-ब-खुद हमें मिल जाते हैं।प्रधानमंत्री ने ‘छात्र संसदों’ के आयोजन का सुझाव दिया, जिनका मार्गदर्शन और संचालन खुद पीठासीन अधिकारियों द्वारा किया जाए।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी