रणथंभौर जंगल की हवाएं शांत हैं, सूने पद्म तालाब पर शाम का सन्नाटा गहरा जाता है, तो ऐसा लगता है मानो रणथंभौर का दिल धड़कना बंद हो गया हो। 19 जून, 2025 की वो शाम, जब रणथंभौर की शानदार बाघिन एरोहेड(Arrowhead) ने पद्म तालाब के किनारे अपनी आखिरी सांस ली, तब इस विश्व विख्यात टाइगर रिजर्व की दुनिया थम सी गई। एक ऐसा नाम, जो सिर्फ एक बाघिन का नहीं, बल्कि एक युग का प्रतीक था, अब इतिहास बन गया। लेकिन क्या इतिहास कभी वाकई खत्म होता है? नहीं, क्योंकि एरोहेड की कहानी, उसकी चाल, उसकी शान, और उसकी हिम्मत, जंगल की हवा में, हर पेड़ की छांव में, और हर तालाब के किनारे बाकी है।
एरोहेड, रणथंभौर टाइगर रिजर्व की वह बाघिन, जो 14 साल की उम्र में हड्डी के कैंसर से जूझते हुए इस दुनिया से चली गई, लेकिन एक ऐसी विरासत छोड़कर, जो कभी मिट नहीं सकती। मगरमच्छ का शिकार करने वाली, दस शावकों की मां, और रणथंभौर की रानी—उसने जीवन जिया रानियों की तरह, और दुनिया से गई भी रानियों की तरह।
जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर, जब उसकी चाल थक गई, शरीर सूख गया, कदम कांपने लगे, और आंखें गहरी हो गईं, तब भी उसकी शान में कोई कमी नहीं थी। 17 जून की शाम, पद्म तालाब के किनारे, मशहूर फोटोग्राफर सचिन राय ने उसकी आखिरी झलक कैमरे में कैद की। उस तस्वीर में, एक थकी हुई बाघिन दिखाई देती है, लेकिन T120 जैसे खतरनाक नर बाघ को हराने वाली उसकी आंखों में अभी भी वह ज्वाला थी, जो कह रही थी—“मैं हार नहीं मानूंगी।” जैसे जंगल खुद उसे विदा कर रहा हो, हर पेड़, हर पत्ता, हर जानवर, उसकी चाल को सलाम कर रहा हो।
एरोहेड की कहानी सिर्फ ताकत की नहीं थी। यह हौसले, मातृत्व, और बार-बार उठ खड़े होने की मिसाल थी। वह रणथंभौर की मशहूर बाघिन कृष्णा की बेटी थी, और मछली की पोती। लेकिन उसने खुद को एरोहेड के नाम से इतिहास में दर्ज किया। उसने अपनी मां का क्षेत्र अपने दम पर हासिल किया, कई बार शावकों को खोया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। यहां तक कि आखिरी दिनों में, जब बीमारी ने उसे जकड़ लिया, तब भी उसने मगरमच्छ का शिकार किया—ये दिखाने के लिए कि असली बाघिन कभी हार नहीं मानती।
उसकी बेटी रिद्धि के जंगल छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद, मां एरोहेड भी चली गई। जैसे उसकी सांसें भी अब उस विरासत को सौंपना चाहती थीं। रिद्धि, जो एरोहेड के दूसरे लिटर से थी, ने अपनी मां के क्षेत्र को छीन लिया, लेकिन यह प्रकृति का चक्र था, और एरोहेड ने इसे स्वीकार किया। उसने हमेशा नई चुनौतियों का सामना किया, T120, एक खतरनाक नर बाघ जो रणथंभौर में उसके लिए चुनौती बन गया था से लड़ी और चौथे लिटर को पाला।
सचिन राय लिखते हैं कि हम मनुष्यों ने कोशिश की, मदद की, खासकर जब बीमारी और कमजोरी ने उसे घेर लिया। लेकिन प्रकृति का अपना रास्ता होता है। शायद हमारी मदद से उन शावकों को फायदा हुआ, शायद नहीं। लेकिन एक बात निश्चित है—एरोहेड एक प्रतीक थी। जंगल की रानी, गरिमा और धैर्य से संतुलित शक्ति का प्रतीक, और हर मुश्किल के बावजूद जीवित रहने का प्रतीक।
आज रणथंभौर में सन्नाटा है, लेकिन जंगल की हवाओं में उसकी चाल की गूंज बाकी है। पद्म तालाब का पानी, जंगल के हर पेड़ की छांव, हर पर्यटक की नजर, एरोहेड को याद करती है। रानी चली गई, लेकिन उसकी कहानी, उसकी हिम्मत, और उसकी शान, रणथंभौर के जंगल में हमेशा रहेगी।