न्यास की राष्ट्रीय संगठन सचिव माधुरी मराठे ने सोमवार को यह जानकारी दी। स्त्री रोग विशेषज्ञों, आयुर्वेदिक चिकित्सकों और योग प्रशिक्षकों के साथ मिलकर न्यास एक कार्यक्रम की योजना बना रहा है जिसमें गर्भ में शिशुओं को सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करने के लिए गर्भावस्था के दौरान गीता एवं रामायण का पाठ और योगाभ्यास किया जाएगा।
इस अभियान का उद्देश्य एक ऐसा कार्यक्रम विकसित करना है जो यह सुनिश्चित करे कि बच्चा गर्भ में संस्कार सीख सके और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी, जब तक कि बच्चा दो साल का नहीं हो जाता। संघ की महिला शाखा संवर्धिनी न्यास की इस मुहिम के तहत कम से कम 1,000 महिलाओं तक पहुंचने की योजना है।
मराठे ने बताया कि इस अभियान के तहत न्यास ने रविवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान-दिल्ली सहित कई अस्पतालों के स्त्री रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू परंपरा के 16 संस्कारों में एक पुंसवन संस्कार भी है, जिसके माध्यम से गर्भवती माता को सकारात्मक विचार के साथ, सात्विक भोजन एवं परिवार की परंपरा के अनुसार संस्कारों का प्रत्यारोपण किया जाता है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु को भी इन संस्कारों का लाभ मिलता है। यह स्वस्थ संतान सुनिश्चित करने से भी संबंधित है।