साईंबाबा विवाद में अदालत का दखल नहीं

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014 (21:25 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने साईं बाबा की पूजा करने के बारे में द्वारकापीठ के शंकराचार्य के उस बयान से उठे विवाद में हस्तक्षेप करने से आज इनकार कर दिया जिसके बाद साईं बाबा के बारे में कुछ अपमानजनक बयान दिए गए और कुछ मंदिरों से उनकी प्रतिमा हटाई गई थी।
 
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जनहित याचिका पर इस तरह के विषयों का फैसला नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि श्रृद्धालु यदि यह महसूस करते हैं कि विवादास्पद बयान से उनके पूजा का अधिकार प्रभावित हुआ है या साईंबाबा के खिलाफ तिरस्कारपूर्ण बयान दिए गए हैं तो वे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और उनके अनुयायियों के खिलाफ दीवानी दावा या फिर आपराधिक मामला दायर कर सकते हैं।
 
न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय आवाज दबाने वाला कोई आदेश नहीं दे सकता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आस्था चुनने का अधिकार है और यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें न्यायपालिका दखल दे। न्यायालय ने जनहित याचिका दायर करने वाले श्रृद्धालुओं से कहा कि उनके खिलाफ उत्पन्न समस्या के समाधान के लिए उन्हें उचित मंच से संपर्क करना होगा।
 
न्यायालय साईंधाम धर्मार्थ ट्रस्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। यह ट्रस्ट महाराष्ट्र में साईंबाबा के विभिन्न मंदिरों का प्रबंधन देखता है। यह संगठन चाहता था कि साईंबाबा के प्रति अपमानजनक बयान देने से लोगों को रोकने का केन्द्र को निर्देश दिया जाए।
 
याचिकाकर्ता का कहना था कि शंकराचार्य और उनके अनुयायियों को साईं बाबा के प्रति किसी भी प्रकार के बयान देने से रोकने का निर्देश सरकार को दिया जाए। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया था कि उन्हें और उनके अनुयायियों को देश में किसी भी मंदिर से साईंबाबा की मूर्ति हटाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। (भाषा)
 

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