न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जनहित याचिका पर इस तरह के विषयों का फैसला नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि श्रृद्धालु यदि यह महसूस करते हैं कि विवादास्पद बयान से उनके पूजा का अधिकार प्रभावित हुआ है या साईंबाबा के खिलाफ तिरस्कारपूर्ण बयान दिए गए हैं तो वे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और उनके अनुयायियों के खिलाफ दीवानी दावा या फिर आपराधिक मामला दायर कर सकते हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय आवाज दबाने वाला कोई आदेश नहीं दे सकता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आस्था चुनने का अधिकार है और यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें न्यायपालिका दखल दे। न्यायालय ने जनहित याचिका दायर करने वाले श्रृद्धालुओं से कहा कि उनके खिलाफ उत्पन्न समस्या के समाधान के लिए उन्हें उचित मंच से संपर्क करना होगा।