Money laundering case : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि कर्तव्य निर्वहन के दौरान धन शोधन करने के आरोपी लोक सेवकों के विरुद्ध मुकदमा चलाने से पहले पूर्व मंजूरी लेने की जरूरत है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने न्यायाधीशों और लोक सेवकों के अभियोजन से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197(1) (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 218 के समान) का उल्लेख किया। पीठ ने कहा, धारा 197 (1) में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, जिसे सरकार की मंजूरी के बिना उसके पद से हटाया नहीं जा सकता, उस पर किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया जाता है जो उसके द्वारा अपने कर्तव्य निर्वहन के दौरान किया गया है, तो कोई भी न्यायालय पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 197 (1) का उद्देश्य लोक सेवकों को अभियोजन से बचाना है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके कर्तव्यों के निर्वहन में उनके द्वारा की गई किसी भी गलती के लिए उन पर मुकदमा न चलाया जाए। पीठ ने कहा, यह प्रावधान ईमानदार और निष्ठावान अधिकारियों की रक्षा के लिए है। हालांकि यह सुरक्षा बिना किसी शर्त के नहीं है। उपयुक्त सरकार से पूर्व मंजूरी मिलने पर उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 197(1) के उद्देश्य पर विचार करते हुए इसकी प्रयोज्यता को तब तक खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो धारा 197(1) के साथ असंगत हो। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी प्राप्त करने के बाद दोनों वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour