Chief Justice DY Chandrachud News: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) की न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना (Justice Nagarathna) और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) ने मंगलवार को निजी संपत्तियों से संबंधित फैसले के दौरान भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की ओर से की गई उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया है कि न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर सिद्धांत ने संविधान की व्यापक और लचीली भावना का अहित किया।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सीजेआई की टिप्पणियां अनुचित और असंगत हैं। न्यायमूर्ति धूलिया ने भी टिप्पणियों को दृढ़ता से अस्वीकार करते हुए कहा कि आलोचना कठोर है और इससे बचा जा सकता था। सीजेआई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की 9 न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना को क्यों है आपत्ति : न्यायमूर्ति नागरत्ना ने 130 पन्नों के एक अलग फैसले में चंद्रचूड़ की उस टिप्पणी को उद्धृत किया जिसमें कहा गया है कि इस प्रकार, इस न्यायालय की भूमिका आर्थिक नीति निर्धारित करना नहीं है, बल्कि आर्थिक लोकतंत्र की नींव रखने के निर्माताओं के इस इरादे को सुविधाजनक बनाना है। कृष्णा अय्यर सिद्धांत संविधान की व्यापक और लचीली भावना का अहित करता है।
क्या कहा न्यायमूर्ति धूलिया ने : न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि कृष्णा अय्यर सिद्धांत या ओ चिन्नाप्पा रेड्डी सिद्धांत से वो सभी लोग परिचित हैं, जिनका कानून या जीवन से कोई लेना-देना है और यह निष्पक्षता और समानता के मजबूत मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित है। धूलिया ने कहा कि मुझे यहां कृष्णा अय्यर सिद्धांत, जैसा कि इसे कहा जाता है, पर की गई टिप्पणियों पर अपनी कठोर असहमति भी दर्ज करनी चाहिए। यह आलोचना कठोर है और इससे बचा जा सकता था।
न्यायमूर्ति नागरत्ना, जो 2027 में भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने वाली हैं, ने कहा कि इस न्यायालय की ऐसी टिप्पणियां अतीत के निर्णयों और उनके लेखकों पर राय व्यक्त करने के तरीके में एक विसंगति पैदा करती हैं और उन्हें संविधान के प्रति अहितकारी मानती हैं। (भाषा/वेबदुनिया)