संसद में स्थ‍ापित हुआ सेंगोल, क्या है उसका इतिहास, क्यों मचा बवाल

रविवार, 28 मई 2023 (08:20 IST)
Sengol in new parliament : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पूजा के बाद सेंगोल (Sengol) को नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित कर दिया। इसे हस्तांतरण का प्रतिक बताया जा रहा है। जानिए क्या है सेंगोल, क्या है उसका महत्व, क्या है उसका इतिहास, क्यों मचा बवाल...
 
क्या है सेंगोल का इतिहास?
14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। जिसमें सेंगोल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शाह ने बताया कि यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। आप सभी को आश्चर्य होगा कि इतने साल तक यह आपके सामने क्यों नहीं आया। इसकी जानकारी पीएम मोदी को मिली तो उन्होंने गहन जांच करवाई। इसके बाद इसे देश के सामने रखने कै फैसला किया गया।
 
क्या है भाजपा का आरोप : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किए जाने वाले रस्मी ‘राजदंड’ (सेंगोल) के महत्व को कमतर करके ‘‘चलते समय सहारा देने के काम आने वाली छड़ी’’ बना देने का आरोप लगाया तथा सवाल किया कि उसे भारतीय संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है? उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के एक पवित्र शैव मठ ने भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर पंडित (जवाहरलाल) नेहरू को एक पवित्र राजदंड दिया गया था, लेकिन इसे ‘चलते समय सहारा देने वाली छड़ी’ की तरह बताकर किसी संग्रहालय में भेज दिया गया।
 
क्या है कांग्रेस का पक्ष : कांग्रेस ने दावा किया कि इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘राजदंड’ (सेंगोल) को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित किए जाने का प्रतीक बताया हो। पार्टी नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि पीएम मोदी और उनकी वाह-वाह करने वाले लोग इस रस्मी ‘राजदण्ड’ को तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
गलत दावों से तकलीफ : तमिलनाडु में एक मठ के प्रमुख ने कहा कि सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया था और फिर इसे 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भेंट किया गया था तथा कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में किए जा रहे गलत दावों से उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है। सेंगोल को सौंपे जाने के प्रमाण से जुड़े एक सवाल पर आदिनाम ने कहा कि 1947 में अखबारों और पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें व खबरों सहित इसके कई प्रमाण हैं।
 
नेहरू को इस तरह सौंपा गया था सेंगोल : 1947 में मठ का संचालन अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी के हाथों में था और यह निर्णय लिया गया था आजादी और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक सेंगोल का निर्माण किया जाए।
 
मठ का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा था, जिसमें सदाई स्वामी उर्फ ​​कुमारस्वामी थम्बीरन, मनिका ओडुवर और नादस्वरम वादक टी एन राजारथिनम पिल्लई शामिल थे।
 
थम्बीरन स्वामी ने लॉर्ड माउंटबैटन को सेंगोल सौंपा था, जिन्होंने इसे वापस उन्हें (थम्बीरन स्वामी को) भेंट कर दिया था। इसके बाद, पारंपरिक संगीत की धुनों के बीच एक शोभायात्रा निकालकर सेंगोल पंडित जवाहरलाल नेहरू के आ‍वास पर ले जाया गया था। यहां थम्बीरन स्वामी ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल नेहरू को भेंट किया था।
 
क्या बोले पीएम मोदी : पीएम मोदी ने कहा कि जब आजादी का समय आया तब सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक को लेकर एक प्रश्न उठा था, उस समय राजा और आदिनम के मार्गदर्शन में हमें अपनी प्राचीन तमिल संस्कृति से एक पुण्य मार्ग मिला था। ये मार्ग था- सेंगोल के माध्यम से सत्ता हस्तातंरण का। सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर 1947 में पवित्र तिरुवावडुतुरै आदीनम् द्वारा एक विशेष सेंगोल तैयार कराया गया था।
 
मोदी ने कहा कि जब भारत की आजादी का प्रथम पल आया, तब ये सेंगोल ही था जिसने गुलामी से पहले वाले कालखंड और स्वतंत्र भारत के उस पहले पल को आपस में जोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि आज आजादी के उस प्रथम पल को 'नए संसद भवन' में सेंगोल की स्थापना के समय हमें फिर से पुनर्जीवित करने का मौका मिला है। लोकतंत्र के मंदिर में आज सेंगोल को उचित स्थान मिल रहा है। ये हमें याद दिलाता रहेगा कि हमें कर्तव्य पथ पर चलना है, जनता-जनार्दन के प्रति जवाबदेह बने रहना है।
 
सेंगोल को प्रदर्शनी के लिए रख दिया गया था। आपका यह सेवक और हमारी सरकार अब उस सेंगोल को आनंद भवन से निकाल कर लाई है। 

Edited by : Nrapendra Gupta 

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