पुजारी का परिवार श्री रामचरितमानस की एक प्राचीन पांडुलिपि की खोज कर रहा था जिसे तुलसी घाट स्थित अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास से चुरा लिया गया था। इनके साथ गोस्वामी तुलसीदास से जुड़े कई और लेख भी चोरी हो गए थे। इसी खोज के दौरान पुजारी के परिवार को श्री रामचरितमानस की यह उर्दू प्रति मिली।