मुंबई। गत बुधवार को फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी का अंतिम संस्कार किया गया। उनके घर से श्मशान भूमि की दूरी 5 किलोमीटर से अधिक है। उनकी शवयात्रा में रास्ते भर पुलिस दल और SRPF के जवान तैनात थे। लेकिन, जिस बात ने लोगों का ध्यान खींचा वह थी उनका शव तिरंगे में लिपटा था क्योंकि उन्हें राजकीय सम्मान दिया गया था।
हालांकि भाजपा शासित राज्य मध्यप्रदेश की विधानसभा में भी श्रीदेवी के निधन पर शोक प्रकट किया जाना था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शराब के अंश पाए जाने की खबरों के बीच यह फैसला वापस ले लिया गया। श्रीदेवी को तिरंगे में लपेटे जाने के मामले में सोशल मीडिया पर सवालों की बौछार भी हुई। सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियन का निधन भी इसी दौरान हुआ था, क्या वे इस सम्मान के हकदार नहीं थे?
राजकीय सम्मान का मतलब है कि इसका सारा इंतजाम राज्य सरकार की ओर से किया गया था और उन्हें पुलिस ने गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया। आम तौर पर यह सम्मान बड़े नेताओं, जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मंत्रियों व संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को दिया जाता है।
कौन राजकीय सम्मान का पात्र है या नहीं, इस बात का फैसला केन्द्र, राज्य सरकार तय करती है। पहले यह सम्मान चुनिंदा लोगों को ही दिया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है। अब राजकीय सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि दिवंगत व्यक्ति क्या ओहदा या कद रखता है।
किसी को भी राजकीय सम्मान दिया जाना है या नहीं यह तय करने के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। सरकार राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान और सिनेमा जैसे क्षेत्रों में अहम योगदान करने वाले लोगों के निधन पर भी उन्हें राजकीय सम्मान देती है।
स्वतंत्र भारत में पहला राजकीय सम्मान वाला अंतिम संस्कार महात्मा गांधी का था। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा और सत्य साईं बाबा आदि को भी राजकीय सम्मान दिया गया था। पिछले साल दिसंबर में दादा साहब फाल्के सम्मान प्राप्त फिल्म अभिनेता शशि कपूर को भी राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई थी, लेकिन राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और शम्मी कपूर जैसे अन्य कलाकारों को राजकीय सम्मान नहीं दिया गया था। विनोद खन्ना तो केन्द्र में मंत्री भी रह चुके थे।
इस बारे में अहम बात है कि अगर राज्य सरकार राजकीय सम्मान देने का निर्णय करती है तो इसका असर प्रदेश भर में और केंद्र सरकार के मामले में असर पूरे देश में दिखता है। जब केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जाती है तो सारे मामलों का फैसला फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के अनुसार होता है।
झंडा आचार संहिता के अनुरूप ही सार्वजनिक अवकाश की अवधि, ताबूत को तिरंगे से लपेटे जाने, शवदाह क्रिया या सुपुर्द-ए-खाक के समय बंदूकों से सलामी दिए जाने का निर्धारण होता है। आम तौर पर शव को तिरंगे में लपेटे जाने का अर्थ व्यक्ति के सर्वोच्च बलिदान से होता है।