'शनि शत्रु नहीं मित्र है', इस वाक्य से जनमानस में चर्चित होने वाले दाती महाराज पर आश्रम की ही 25 साल की लड़की ने बलात्कार के आरोप लगाए हैं। लड़की ने दाती महाराज पर आरोप लगाए कि उसने धमकाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। पुलिस दाती महाराज की तलाश करने उसके आश्रम गई, पर उससे पहले ही वह फरार हो गया। आखिर कैसे पाली जिले का मदनलाल महामंडलेश्वर दाती महाराज बन गया। जानिए मदनलाल से दाती महाराज बनने की पूरी कहानी।
दिल्ली ने बदली किस्मत : राजस्थान के पाली जिले के अलावास गांव में मेघवाल परिवार में जुलाई 1950 को दाती का जन्म हुआ। पिता का नाम देवाराम था। बताते हैं कि जन्म के कुछ महीने के बाद ही मां का देहांत हो गया था। मेघवाल समुदाय ढोलक बजाकर अपना परिवार पालता था। देवाराम भी यही काम करते थे। मदन जब 7 साल का हुआ, तो देवाराम की भी मौत हो गई। गांव के ही एक व्यक्ति के साथ मदन दिल्ली आ गया। बताते हैं कि पहले तो उसने चाय की दुकानों में छोटे-मोटे काम किए, फिर कैटरिंग का काम सीख लिया। इसके बाद मदन जन्मदिन और छोटी-मोटी पार्टियों के लिए कैटरिंग करने लगा।
शनि का खौफ दिखाकर बन गया ज्योतिषी : मदन की मुलाकात 1996 में राजस्थान के एक ज्योतिषी से हुई। मदन ने कैटरिंग का काम करने के साथ ही जन्मपत्री देखना सीख लिया। इसके बाद कैटरिंग का कारोबार बंद कर कैलाश कॉलोनी में ज्योतिष केंद्र खोल दिया। नाम बदलकर दाती महाराज रख लिया। मदन हर किसी की जन्मपत्री देखकर शनि की चाल का खौफ दिखाने लगा।
जीत की खुशी में नेता ने सौंप दी पुश्तैनी मंदिर की चाबी : 1998 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने थे। मदन ने एक नेता की कुंडली देखकर कह दिया कि यह व्यक्ति चुनाव जीत जाएगा। आखिरकार वह चुनाव जीत भी गया। इस खुशी में उसने फतेहपुर बेरी में अपने पुश्तैनी मंदिर का काम दाती महाराज को सौंप दिया। सटीक भविष्यवाणी की लोगों में चर्चा होने लगी। इस बीच उसने मंदिर के आसपास की जगहों पर भी कब्जा जमा लिया।
बन गया परमहंस दाती महाराज : हरिद्वार महाकुंभ श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े ने दाती महाराज को 'महामंडलेश्वर' की उपाधि दी। उन्होंने मंदिर को श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर का नाम दिया और अपना नाम श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दातीजी महाराज नाम रख लिया। टीवी चैनलों पर 'शनि शत्रु नहीं, मित्र हैं' के नाम से कार्यक्रम प्रसारित करने लगा।