पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का कुल क्षेत्रफल करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर (भारतीय कश्मीर से 3 गुना बड़ा इसमें गिलगित और बाल्टिस्तान भी शामिल है।) है, जहां करीब 30 लाख लोग रहते हैं। पीओके की सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर, उत्तर में चीन के जिंगजियांग ऑटोनॉमस रीजन और पूर्व में जम्मू-कश्मीर और चीन से मिलती है। पीओके को प्रशासनिक तौर पर 2 हिस्सों- आजाद कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में बांटा गया है।
अक्साई चिन : पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अक्साई चिन शामिल नहीं है। यह इलाका महाराजा हरिसिंह के समय में कश्मीर का हिस्सा था। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद कश्मीर के उत्तर-पूर्व में चीन से सटे इलाके अक्साई चिन पर चीन का कब्जा है। पाकिस्तान ने चीन के इस कब्जे को मान्यता दी है। जम्मू-कश्मीर और अक्साई चिन को अलग करने वाली रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है।
नेहरू और हरिसिंह की गलती : 1947 में पाकिस्तान के पख्तून कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने भारतीय सरकार के साथ एक समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार से सैन्य सहायता मांगी गई और इसके बदले में जम्मू-कश्मीर को भारत में मिलाने की बात कही गई। भारत ने इस समझौते पर दस्तखत कर दिए। उस समय पाकिस्तान से हुई लड़ाई के बाद कश्मीर 2 हिस्सों में बंट गया। कश्मीर का जो हिस्सा भारत से लगा हुआ था, वह जम्मू-कश्मीर नाम से भारत का एक सूबा हो गया, वहीं कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सटा हुआ था, वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया।
भारत सरकार ने पाक अधिकृत कश्मीर का नाम बदलकर पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर कर दिया है। भारत ने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा में पीओके के लिए 24 सीटें और संसद में 7 सीटें रिजर्व रखी हैं।
पीओके को लेकर पाकिस्तान की दोहरी नीति है। एक तरफ तो वह इसे आजाद कश्मीर कहता है तो दूसरी ओर यहां के प्रशासन और राजनीति में सीधा दखल कर यहां के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने में लगा है। यहां पर बाहरी लोगों को बसा दिया गया है। पीओके का शासन मूलत: इस्लामाबाद से सीधे तौर पर संचालित होता है। आजाद कश्मीर के नाम पर एक प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया है, जो इस्लामाबाद का हुक्म मानता है।
49 सीटों वाली पीओके विधानसभा के लिए 1974 से ही पीओके में चुनाव कराए जा रहे हैं और वहां एक प्रधानमंत्री भी है। लेकिन पीओके या पाकिस्तान के बाहर इस दावे को मान्यता नहीं मिली है। पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद है। पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर के तौर पर विश्व मंच पर पेश करता है, जबकि भारत इसे गुलाम कश्मीर कहता है। पाकिस्तान पर पीओके की निर्भरता भी किसी से छुपी हुई नहीं है।
गिलगिट व बाल्टिस्तान को पहले पाकिस्तान में नॉर्दर्न एरिया कहा जाता था और इसका प्रशासन संघीय सरकार के तहत एक मंत्रालय चलाता था। लेकिन 2009 में पाकिस्तान की संघीय सरकार ने यहां एक स्वायत्त प्रांतीय व्यवस्था कायम कर दी जिसके तहत मुख्यमंत्री सरकार चलाता है। अब इलाके की अपनी असेंबली है जिसमें कुल निर्वाचित 24 सदस्य होते हैं। इस असेंबली के पास बहुत ही सीमित अधिकार हैं या कहें कि न के बराबर हैं। यहां पर शियाओं को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं है। अलग-अलग समय में वे भारतीय कश्मीर में आकर बस गए हैं और अभी भी उनका आना जारी है।
आतंक का ट्रेनिंग स्थल : यह तथ्य दुनिया से छुपा नहीं है कि पाकिस्नान ने पाक अधिकृत कश्मीर को भारतीय कश्मीर और चीन के जिंगजियांग में आतंकवादी फैलाने के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर बना दिया है, लेकिन अब चीन की गतिविधियां बढ़ने के कारण उसने अपना फोकस पूर्णत: कश्मीर पर कर दिया है।
1988 से ही पाकिस्तान आतंकवादियों को यहां ट्रेंड कर जम्मू और कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए भेजता है। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में एक बार उमर अब्दुल्ला ने ताजा जानकारी दी थी कि पाक अधिकृत कश्मीर में अब भी करीब 4,000 कश्मीरी ट्रेनिंग ले रहे हैं। उन्होंने विधायक प्रोफेसर चमनलाल गुप्ता के प्रश्न के लिखित जवाब में विधानसभा में कहा था कि पीओके और पाकिस्तान में कथित रूप से अब भी करीब 3,974 आतंकवादी घुसपैठ की तैयारी कर रहे हैं।
यहां के कश्मीरियों को पाकिस्तान ने 'आजादी' का सपना दिखाया है लेकिन यह सच नहीं है, क्योंकि वह समूचे कश्मीर को ही पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहता है। इसी नीति के तहत उसने दोनों ही तरफ के कश्मीरियों में पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी का धीरे-धीरे विकास किया है। दुर्भाग्य से हालिया समय में पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को भी जातीय संघर्ष, आतंकवाद और पाकिस्तान की कब्जा करने वाली नीतियों के कारण आर्थिक और सामाजिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है। बद से बदतर है कश्मीरियों की जिंदगी, क्योंकि पाकिस्तान वहां पर विकास के नाम पर कुछ नहीं करता। वह ऐसा तब तक नहीं करना चाहेगा, जब तक कि यह स्पष्ट नहीं हो जाए कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या नहीं।
चीन की बढ़ती पैठ : अब एक और समस्या का सामना पाक अधिकृत कश्मीरियों को करना पड़ रहा है। विकास के नाम पर या विकास संबंधी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर उसने चीन को अंदर घुसा लिया है। पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के निर्माण सहित बुनियादी ढांचे के निर्माण की सभी परियोजनाओं पर समझौता किया है। हालांकि कश्मीरी यह कहते हैं कि यहां विकास जैसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे की नीयत साफ नहीं है। हजारों चीनी अंदर आकर बैठ गए हैं। चीनी सैनिकों की हलचल बढ़ गई है। कई जगहों पर इनके कैंप लगे हुए हैं। यहां बस सुरंगें खोदी जा रही हैं और कुछ नहीं।
चीन की सुरंग : चीन और पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होते हुए 200 किमी लंबी सुरंग बनाने का समझौता किया है। रणनीतिक लिहाज से अहम इस इलाके में सुरंग को बनाने पर 18 अरब डॉलर का भारी-भरकम खर्च किए जाने की योजना है। पीओके से गुजरने वाले पाक-चीन आर्थिक गलियारे से चीन का रणनीतिक हित जुड़ा है। दरअसल, यह कश्मीर के विकास नहीं, भारत पर दबाव बनाने की ही रणनीति का एक हिस्सा है। यह सुरंग अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन में काशघर से जोड़ेगी। महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह का नियंत्रण पिछले साल चीन के हाथ में आया है। इसके अलावा कश्मीर का एक बहुत बड़ा भू-भाग अक्साई चिन पाकिस्तान ने चीन को दे दिया है, जहां पर पूर्ण रूप से चीन का ही नियंत्रण है।
सच्चाई ये है : भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार चीनी सेना पीओके में पाकिस्तानी सैनिकों को हथियार संबंधी ट्रेनिंग दे रही है। बीएसएफ की खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेनिंग प्रोग्राम राजौरी सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के उस पार चल रहा है। यह अभ्यास पाक के अग्रिम रक्षा ठिकानों पर हो रहा है। वहीं बीएसएफ की अन्य एक सूचना के मुताबिक श्रीगंगानगर सेक्टर के उस पार कुछ पाक सैन्य इकाइयों ने चौकियों पर रेंजर्स का स्थान ले लिया है। पाक सेना और रेंजर्स भारतीय सैनिकों और संपत्तियों को निशाना बनाने के लिए रणनीतिक ठिकानों और चौकियों पर अचूक निशानेबाज तैनात करने की योजना बना रहे हैं।