नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके जरिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि बच्ची के शरीर को उसके कपड़ों के ऊपर से स्पर्श करने को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा यह विषय पेश किए जाने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी। शीर्ष न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी जारी किया और अटार्नी जनरल को बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के 19 जनवरी के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी।
गौरतलब है कि 19 जनवरी को उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि व्यक्ति ने बच्ची के शरीर को उसके कपड़े हटाए बिना स्पर्श किया था, इसलिए उसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। इसके बजाय यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध बनता है।
उच्च न्यायालय ने एक सत्र अदालत के आदेश में संशोधन किया था, जिसमें 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की का यौन उत्पीड़न करने को लेकर तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी। उल्लेखनीय है कि आईपीसी की धारा 354 के तहत न्यूनतम एक साल की कैद की सजा का प्रावधान है, जबकि पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न के मामले में तीन साल की कैद की सजा का प्रावधान है।