एक अर्जी का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा कि जहां तक पशुओं की गंभीर रूप से विलुप्तप्राय स्वदेशी नस्लों को बचाने और उनकी संरक्षा के लिए की गई याचना का संबंध है, तो अपीलकर्ता संबंधित राज्य सरकारों के समक्ष अभ्यावेदन दे सकते हैं।
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने अगस्त, 2018 के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। इस दौरान पीठ ने स्वदेशी नस्ल की गायों की रक्षा के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अख्तियार किए गए साझा रुख पर विचार किया।
एनजीटी ने उस आवेदन पर यह आदेश पारित किया था जिसमें कई दिशा-निर्देश मांगे गए थे। इसमें गंभीर रूप से लुप्तप्राय स्वदेशी प्रजातियों को बचाने, उन्हें संरक्षित करने के लिए तत्काल कदम उठाने और यह भी सुनिश्चित करने की बात शामिल थी कि स्वदेशी नस्ल के दुधारू मवेशियों का वध न किया जाए।
शीर्ष अदालत ने पाया कि एनजीटी ने राष्ट्रीय पशुधन नीति-2013 का उल्लेख किया था और यह भी दर्ज किया था कि कुछ राज्यों के पास अपने स्वयं के पशुवध-विरोधी कानून हैं और उनमें से कोई भी देशी गायों की रक्षा के विचार का विरोध नहीं कर रहा है। न्यायालय ने कहा कि अब गोवंश के वध पर रोक लगाने के संबंध में अपीलकर्ता द्वारा की गई याचना बाकी रह गई है, लेकिन हम देख सकते हैं कि यह कुछ ऐसा है जिस पर निर्णय लेना सक्षम विधायिका का काम है।(भाषा)