Supreme Court's decision: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि दुर्भावना से कहे जाने के बावजूद किसी के लिए मियां-तियां (Mian-Tian) और पाकिस्तानी (Pakistani) जैसे शब्दों का इस्तेमाल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने झारखंड के चास स्थित अनुमंडल कार्यालय में सूचना के अधिकार (RTI) के तहत एक उर्दू अनुवादक एवं कार्यवाहक लिपिक द्वारा दायर आपराधिक मामले में एक व्यक्ति को आरोपमुक्त कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह सूचनादाता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के समान नहीं है। इसलिए हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 के तहत भी बरी किया जाना चाहिए। आईपीसी की धारा 298 धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर कहे गए शब्दों या इशारों से संबंधित है।
यह था मामला : अनुमंडल कार्यालय, चास के अर्दली के साथ सूचनादाता 18 नवंबर, 2020 को सूचना देने के लिए आरोपी के घर पहुंचा। आरोपी ने पहले तो दस्तावेज लेने से इनकार कर दिया लेकिन सूचनादाता के जोर देने पर उसे स्वीकार कर लिया। यह आरोप है कि आरोपी ने सूचनादाता के धर्म का जिक्र करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया। इसके बाद अनुवादक ने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने उसे जानबूझकर अपमान करने के अपराध से मुक्त कर दिया और कहा कि धारा 353 के अलावा उसकी ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया, जिससे शांति भंग हो सकती हो।
न्यायालय ने कहा कि हम उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हैं, जिसमें निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा गया था। हम अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हैं तथा अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए तीनों आरोपों से मुक्त करते हैं।(भाषा)