सर्जिकल स्ट्राइक से होगा पाकिस्तान का इलाज

16 दिसम्बर 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। उस समय सेना की सभी बटालियन ने जी जान से युद्ध लड़ा था और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। इन्हीं में से एक हमारी भारतीय सेना के 17 राजपूताना राइफल्स बटालियन के प्लाटून कमांडर रहे कर्नल धर्मराज सिंह थे। इनकी बटालियन ने दुश्मनों के बीस टैंकों को नेस्तनाबूत कर दिया था। पेश हैं विवेक त्रिपाठी द्वारा उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश-
 
 
आप 1971 के युद्ध के अनुभव के बारे में कुछ बताएं?
मैं 17 राजपूताना राइफल्स का प्लाटून कमांडर था। मेरी प्लाटून में 37 जवान हुआ करते थे। हम 8:40 पर चले, 9:30 बजे हमला था। हमारे दाहिनी तरफ दुश्मनों के 7 टैंक और दो बटालियन बाईं तरफ खड़ी थीं। वहीं हमारी दूसरी बटालियन के कुछ जवान वापस जा रहे थे, वह मेजर चांदपुरी की बटालियन के थे। मेजर चांदपुरी के सारे असलहे और आदमी खत्म हो गए थे, उनके केवल सात आदमी ही बचे थे। हालांकि चांदपुरी ने युद्धभूमि को छोड़ा नहीं। हम लोगों ने उनके जवानों को युद्ध में वापस चलने को कहा। 5 दिसंबर 1971 को दुश्मनों के कुछ टैंकों को हमारे हवाई जहाजों ने उड़ा दिया।
 
हमें यह खबर दो बजे मिली, जब हम शादेवाला पहुंचे। वहां पहुंचने पर जल्दी युद्ध में जाने का आदेश मिला। वहां पहुंचकर सबने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। भौगोलिक परिस्थिति ऐसी थी कि हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। फिर भी हम लोगों ने फायरिंग रोकी नहीं। गोला-बारूद से लगातार हमला कर रहे थे। दुश्मन सभी पश्चिमी पाकिस्तान के थे। 10 बजे अंधेरा होने पर फायरिंग कुछ हल्की हुई थी। दुश्मन एलएमजी से फायर कर रहा था। 8 बजे से लेकर 12 बजे तक सिर्फ 17 राजपूताना राइफल्स ने पूरी लड़ाई को अंजाम दिया। 
 
हमने क्विंच मोर्टार से फायर दागने शुरू किए। पहले गोले ने उनके एलएमजी को नष्ट कर दिया। जितने भी मेरी रेंज में थे, सबको मार गिराया। इसके बाद वह भागने लगे। वह अपने टैंक छोड़कर भाग रहे थे। जो सामने आया वह मारा गया। दाहिने तरफ हमारे टैंक खड़े थे। उन्हें सिर्फ रॉकेट लांचर से नष्ट किया जा सकता था, पर उनकी रेंज 65 गज होती थी और टैंक 500 मीटर पर खड़े थे। फिर मैंने जवानों को कपोला से फायर करने की बात कही। एलएमजी वाले लगातार फायर कर रहे थे।
 
 
जब सात टैंकों ने हमारी तरफ आना शुरू किया तो हमारे पास सिर्फ दो राउंड और सात रॉकेट लांचर ही बचे थे। इसलिए मैंने जवानों को फायर करने के लिए रोक दिया। मैंने कहा कि फायर रेंज पर ही किया जाएगा। इसी बीच असलहों में रेत घुस गई। हमारे और दुश्मनों के बीच का फासला चार सौ मीटर का बचा। हमने हथियारों को साफ करके लड़ाई लड़ी। जब हम गन साफ कर रहे थे। दुश्मन को हमारा सिर्फ फुंतड़ू दिख रहा था। कोई कवर नहीं था दुश्मन को वह सफेद रंग का कपड़ा ही दिख रहा था, पता नहीं दुश्मन उसे क्या समझ रहे थे, लेकिन हम लोग रुक-रुक कर फायर कर रहे थे।
 
 
दुश्मन के टैंक अचानक से पीछे वापस जाने लगे। मैंने जवानों से कहा वह डरकर वापस जा रहे हैं। 12 बजे तक वह हमारी रेंज से बाहर चले गए। हम लोगों ने वहां खड़े होकर जश्न मनाना शुरू कर दिया। इसके बाद हमारे हवाई जहाज उनके टैंकों को नष्ट करने लगे और हम लोग ताली बजाते रहे। हम लोगों की मार से उनके बिग्रेड कमांडर भी डर गए। इसका उल्लेख सिंह ने अपनी किताब में किया है।
 
पाकिस्तानियों को 20 किलोमीटर अंदर तक खदेड़कर भारतीयों ने कब्जा कर लिया। दुश्मन के इलाके पर हमारी फौज का कब्जा था। इसके बाद दुश्मन की तरफ से जीओसी सफेद झंडा लेकर आया और उसने कहा कि आप जैसी जवानों की टोली हमें मिल जाए तो हम किसी भी देश से लड़ सकते हैं। इसके बाद दुश्मनों ने आत्मसमर्पण कर दिया और हमारे जवानों की जीत हुई। यह लोंगेवाला की मुख्य लड़ाई थी, जिसका आंखों देखा हाल मैंने बयां कर दिया।
 
 
शिमला समझौते से आप कितना सहमत हैं?
यह समझौता ठीक नहीं था। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक भारत में युद्धबंदी बनाए गए। जिन्हें हमने छोड़ दिया लेकिन दुश्मनों ने हमारे 50 सैनिकों का क्या किया। उसमें ज्यादातर अफसर हैं जिनका आज तक पता नहीं चला। दुश्मनों को हमेशा मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है।
 
 
पाकिस्तान हमसे सीधे युद्ध में सदा हार जाता है, लेकिन बार-बार छद्म युद्ध करता है, इससे कैसे निपटें?
इससे निपटने का सीधा उदाहरण सर्जिकल स्ट्राइक है। हमारी सेना ने सीधे दुश्मन की नाक पर मुक्का मारा है। अब दुश्मन को दिन में तारे दिख गए। यह लोग कभी हार की लड़ाई नहीं लिखते, जो कि बहुत अच्छा साबित हुआ। इनको समय-समय पर ऐसे ही जवाब देने की जरूरत है।
 
कश्मीर की समस्या से भारत को राहत नहीं मिल पा रही, ऐसा क्यों?
कश्मीर की समस्या कब की खत्म हो जाती, पर हमारे राजनीतिक दलों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जब हमने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक पकड़ लिए थे, तो उन्हे छोड़े जाने की जरूरत नहीं थी। दुश्मन की जमीनों पर हमने कब्जा कर लिया था। अगर वह नहीं छोड़ते तो आज यह समस्या नहीं खड़ी होती। यह मजहब के नाम पर अपना प्रसार करते हैं। जिसे रोके जाने की जरूरत है, वहां पर जो अपना धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, उन्हें पुनः अपने धर्म में लाने की जरूरत है, जिससे यह रुक सके।
 
 
वन रैंक वन पेंशन से आप कितना सहमत हैं?
इससे मैं ज्यादा सहमत नहीं हूं। इसे ठीक किया जाना चाहिए, जिससे जो जिस रैंक का हो, उसे उसी हिसाब से वेतन मिल सके।
 
अपने देश में अभी हथियारों की कितनी कमी है?
हथियारों की ज्यादा कमी तो नहीं है। पर सेना को नई तकनीक के हथियारों की जरूरत है, जिसे खरीदा जाना चाहिए।
 
सेना के ऊपर बनी बार्डर फिल्म से आप कितना सहमत हैं?
वह फिल्म पूरी तरह से धोखा है। उसमें हमारी बटालियन का जिक्र भी नहीं किया गया। इसकी लड़ाई अभी भी मैं लड़ रहा हूं। फिल्म में हमारे जवानों के युद्ध कौशल की चोरी हुई है। पूरे युद्ध में हमारे बटालियन को कहीं नहीं दिखाया गया। उस समय के मेजर चांदपुरी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। जब हमने फिल्म के निर्देशक जेपी दत्ता से बोला तो उन्होंने इस पर बात करने से मना कर दिया। कई बार ऐसी बात उठाई गई हैं, लेकिन इस पर कोई हल नहीं निकल रहा है। इस पर मैं किताब भी लिख रहा हूं। इसके खिलाफ मैं कोर्ट भी जाऊंगा।

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