नई दिल्ली, यूपी-पंजाब समेत उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में चुनाव चल रहे हैं, ऐसे में कई मुद्दे गरमाए हुए हैं। विधानसभा चुनावों खासकर उत्तर प्रदेश और पंजाब में हाल के दिनों में आतंकवाद, हिजाब, खालिस्तान और यूपी-बिहार के भैया जैसे कई मुद्दे प्रमुखता से उठाए गए, जबकि जनता से जुड़े बुनियादी मुद्दे हाशिए पर नजर आए।
इन मुद्दों के हावी होने की वजह और इनके असर से जुड़े पहलुओं पर सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:
सवाल:चुनावों में मतदान से ठीक पहले बुनियादी मुद्दों से इतर कई दूसरे मुद्दे हावी नजर आते हैं। क्या इनका असर होता है? जवाब: कई बार थोड़ा-बहुत असर होता है, हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि मुद्दा किस तरह का है। मसलन, अरविंद केजरीवाल के बारे में कुमार विश्वास के बयान का असर कम होगा, क्योंकि वह उस कथित टिप्पणी के बारे में बात कर रहे हैं जो शायद पांच-छह साल पहले की गई थी। लोग समझते हैं कि बयान देने वाला पार्टी में पहले रह चुका है और छह साल बाद कोई बयान दे रहा है। मेरे कहने का मतलब है कि हर मुद्दे का एक जैसा असर नहीं होता है। अगर कोई बयान या मुद्दे का संबंध लोगों के रोजमर्रा के जीवन से होता है तो उसका असर होता है।
सवाल: अब तक इन चुनावों में सबसे प्रमुख मुद्दे क्या रहे हैं, जो नतीजों के संदर्भ में निर्णायक हो सकते हैं? जवाब: बेरोजगारी, महंगाई, कोरोना के असर जैसे मुद्दे चुनावी विमर्श में प्रमुखता से नहीं दिख रहे हैं। मुझे लगता है कि इस बार पहचान (आईडेंटिटी) का मुद्दा सबसे आगे है। चाहे जाट वोटरों की पहचान हो, या फिर गैर-यादव ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की पहचान हो या मुस्लिम मतदाताओं की धार्मिक पहचान हो, इस चुनाव में पहचान ही सबसे बड़ा मुद्दा बनकर रह गया है। पंजाब में स्थापित राजनीतिक दलों से जनता की हताशा और परिवर्तन बड़ा मुद्दा रहा है। गोवा में खनन का बड़ा मुद्दा रहा। उत्तराखंड में भी जनता में हताशा थी, लेकिन वहां आम आदमी पार्टी की दस्तक के चलते चुनाव परिणाम कुछ भी हो सकता है।
सवाल: आखिर क्या वजह है कि कुछ महीने पहले आई कोरोना महामारी की त्रासदी चुनावी राज्यों में बड़ा मुद्दा नहीं बन सकी? जवाब: इसमें काफी समय बीत गया और लोगों को यह लगा कि कोरोना से सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में तबाही हुई। ऐसे में लोग अपनी तकलीफ को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि यह विषय बहुत बड़े स्तर पर चुनावी मुद्दा नहीं बन सका।
सवाल: क्या आप उत्तर प्रदेश में आतंकवाद, हिजाब और कुछ अन्य मुद्दों का असर होता देख रहे हैं? जवाब: सभी राजनीतिक दल ये कोशिश करते हैं कि अपने समर्थकों को कैसे अपनी ओर खींचा जाए। इसमें इस तरह के मुद्दे उनके लिए मददगार होते हैं। अगर कोई बयान या मुद्दा किसी समुदाय से सीधे संबंधित होता है तो उसका सीधा असर होता है, लेकिन अगर किसी बयान का किसी व्यक्ति या समुदाय से संबंध नहीं होता है तो उसका असर नहीं होता। इतना जरूर है कि अब तक पहचान का मुद्दा ही सबसे प्रमुख रहा है।
सवाल: क्या उत्तर प्रदेश में आगे के चरण के चुनावों में भी जातिगत गोलबंदी और धार्मिक ध्रुवीकरण से जुड़े मुद्दे हावी रहने वाले हैं?
जवाब: समाजवादी पार्टी गैर यादव ओबीसी समुदायों को खींचने के लिए कोशिश करेगी। ऐसे में भाजपा चाहेगी कि जाति के आधार पर वोट नहीं बंटे। जातिगत आधार पर वोट के बंटवारे को रोकने के लिए आतंकवाद, गुंडागर्दी और कुछ अन्य मुद्दों का सहारा लिया जा रहा है। मुझे लगता है कि आगे के चुनावों में भी हिंदुत्व का मुद्दा चलता रहेगा। मुझे नहीं लगता कि परिणाम विपरीत रहने जैसी किसी स्थिति में भी भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़ेगी। यह बात और है कि वह इसके साथ कुछ अन्य मुद्दों को भी जोड़ सकती है। (भाषा)