कल्पना नहीं, हकीकत में एक शहर है 'टिंबकटू'

रविवार, 1 नवंबर 2015 (16:00 IST)
-शोभना जैन

नई दिल्ली। दुनियाभर, विशेष तौर पर भारत में बोलचाल की भाषा में बेहद प्रचलित स्थान और मिथकों में रचा-बसा टिंबकटू कोई काल्पनिक जगह नहीं, बल्कि पश्चिमी अफ्रीकी देश माले का समृद्ध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत वाला एक शहर है, जहां की समृद्ध विरासत की वजह से इसे संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक इकाई यूनेस्को ने इसे अपनी विश्व विरासत सूची में दर्ज कर रखा है।
राजधानी में इसी सप्ताह संपन्न तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर बैठक में हिस्सा लेने आए माले के राष्ट्रपति इब्राहीम बी. कीता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान उन्हें माले की यात्रा करने और विशेष तौर पर इस शहर की यात्रा करने और स्वयं वहां उनकी मेजबानी करने का यह न्योता दिया।
 
गौरतलब है कि आतंकवाद से जूझ रहे माले का यह शहर आतंकियों के निशाने पर है्। आतंकियों ने इस शहर को उड़ा देने की धमकी दी है, लेकिन खराब हालात के टिंबकटूवासी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की मिसाल माने जाते हैं।
5वीं सदी में बना यह शहर 15वीं-16वीं सदी में सांस्कृतिक और एक व्यापारिक नगरी के रूप में सामने आया। टिंबकटू को भले ही दुनिया का अंत माना जाता रहा हो, ल‍ेकिन पुराने समय में इसकी हैसियत महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों के केंद्र के रूप में थी। ऊंटों के काफिले सहारा रेगिस्तान होकर सोना ढोया करते थे।
 
प्राचीन इस्लामी पांडुलिपियों का एक समृद्ध संग्रह है टिंबकटू में। इसके बारे में कहा जाता है कि मुस्लिम व्यापारी इस शहर से होकर पश्चिमी अफ्रीका से सोना यूरोप और मध्य-पूर्व ले जाते थे, जबकि उनकी वापसी नमक और अन्य उपयोगी वस्तुओं के साथ होती थी। ऊंटों के काफिले सहारा रेगिस्तान होकर सोना ढोया करते थे और इस फलते-फूलते व्यापार ने टिंबकटू को उस जमाने के धनी शहरों में ला खड़ा किया था।
 
एक किंवदंती तो यह भी है कि प्राचीन माले राष्ट्र के नरेश कंकन मोउसा ने 16वीं सदी में काहिरा के शासकों को इतनी भारी मात्रा में स्वर्णजड़ित उपहार दिए कि सोने की कीमत मुंह के बल गिर गई। एक और दिलचस्प किस्सा भी मशहूर रहा कि उस जमाने में टिंबकटू में सोने और नमक की कीमत बराबर हुआ करती थी।
 
लेकिन इससे भी ज्यादा टिंबकटू की ख्याति पुराने समय में एक धार्मिक केंद्र के रूप में भी थी। शहर इस्लाम का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, लेकिन 16वीं और 17वीं सदी में अटलांटिक महासागर के व्यापार मार्ग के रूप में उभरने के साथ ही 'संतों के नगर' टिंबकटू का पतन शुरू हो गया तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला यह शहर आज गर्मी और बालू के टिब्बों वाले एक सुनसान से शहर के रूप में ही ज्यादा जाना जाता है।
 
माले की राजधानी माले के इस इलाके के गवर्नर के अनुसार बाहरी दुनिया से टिंबकटू का संपर्क मात्र बालू की सड़कों के जरिए है, जहां दस्युओं का आतंक है। आवाजाही के साधन आसान नहीं होने के बावजूद टिंबकटू के आकर्षण के मारे हजारों पर्यटक आज भी इस रहस्यमय शहर की ओर खिंचे चले आते हैं और इस कारण पर्यटन यहां का बड़ा रोजगार का साधन है।
 
टिंबकटू के सांकोर विश्वविद्यालय से पढ़े हजारों विद्वानों ने एक समय संपूर्ण पूर्वी अफ्रीका में इस्लाम को फैलाया था। यह विश्वविद्यालय अब भी भारी संख्या में छात्रों को आकर्षित कर रहा है। 650 साल से भी ज्यादा पहले मिट्टी-गारे से निर्मित विशालकाय जिंगरेबर मस्जिद भी उसी बुलंदी से कायम है। 
 
...तो टिंबकटू सिर्फ मिथकों, कल्पनाओं और किसी उपन्यास का काल्पनिक शहर नहीं, अपितु एक जीवंत शहर है। (वीएनआई)

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