दरअसल, पहली नजर में देखें तो सरकार के इस फैसले सवाल उठाने कारण ही नहीं बनता क्योंकि जिस आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाने की बात कही गई, वह वर्ग सबसे ज्यादा घर से बाहर रहता है। साथ ही उसके सबसे ज्यादा संक्रमित होने की आशंका भी होती है। दूसरी ओर, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि युवाओं की इम्युनिटी तुलनात्मक रूप से काफी अच्छी होती है, ऐसे में उन्हें नुकसान कम होता है, लेकिन वे करियर का काम तो कर ही सकते है। सवाल यह हो सकता है कि आखिर इतनी बड़ी आबादी को टीका लगेगा कैसे?
दूसरी ओर, कोरोना संक्रमितों की संख्या रोज बढ़ रही है। पिछले 24 घंटों में भारत में 2 लाख 59 हजार से ज्यादा नए संक्रमित आए हैं, जबकि संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 1 करोड़ 53 लाख 21 हजार 89 हो गई है। अब तक 1 लाख 80 हजार 500 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
ऐसे में संक्रमितों की बढ़ती संख्या को रोकना है तो इसका एकमात्र और सबसे बड़ा उपाय यही है कि देश की ज्यादा से ज्यादा आबादी का टीकाकरण कर दिया जाए। हालांकि डॉक्टरों यह भी कहना है कि टीका संक्रमण होने की गारंटी नहीं है, लेकिन वैक्सीनेशन से कोरोनावायरस के घातक परिणाम नहीं के बराबर होते हैं।
दूसरी ओर, हमारे मित्र राष्ट्र इसराइल और भूटान तो अपने-अपने देशों की बहुत बड़ी आबादी का टीकाकरण कर चुके हैं। इसराइल के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सफल टीकाकरण कार्यक्रम के कारण संक्रमित मरीजों की संख्या काफी कम रह गई है। इतना ही नहीं वहां पर मास्क पहनने की जरूरत को भी खत्म कर दिया गया है।
इसराइल में 81 फीसदी जनता को वैक्सीन लग चुकी है, जबकि भूटान अपनी 62 फीसदी जनसंख्या का टीकाकरण कर चुका है। भूटान में अब तक 961 लोग संक्रमित हुए हैं, जबकि मात्र एक व्यक्ति की संक्रमण के चलते मौत हुई है और 881 लोग रिकवर हो चुके हैं। ऐसे में भारत सरकार का यह फैसला पूरी तरह उचित है कि ज्यादा से लोगों को जल्द से जल्द टीका लगा दिया जाए।