संवैधानिक संस्थाएं अपने दायरे में रहें तभी होता है परस्पर सम्मान : उपराष्ट्रपति धनखड़

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

गुरुवार, 1 मई 2025 (16:56 IST)
Vice President Jagdeep Dhankhar News : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं का एक-दूसरे का सम्मान करना बाध्यकारी कर्तव्य है और यह सम्मान तभी होता है जब सभी संस्थान अपने-अपने दायरे में सीमित रहते हैं। उन्होंने कहा कि संस्थाओं के टकराव से लोकतंत्र फलता-फूलता नहीं है। उन्होंने हाल में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर उच्चतम न्यायालय के रुख की तरफ इशारा करते हुए कहा, कई ऐसी चुनौतियां हैं...जिसकी हम चर्चा नहीं कर सकते। जो चुनौती अपनों से मिलती है जिसका तार्किक आधार नहीं है। इन चुनौतियों का मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं।
 
धनखड़ ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के जीवन वृतांत पर आधारित पुस्तक ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ के विमोचन के अवसर पर पहलगाम आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए कहा, राष्ट्र प्रथम ही हमारा सिद्धांत होना चाहिए। मगर सबसे खतरनाक चुनौती वह है जो अपनों से मिलती है।
ALSO READ: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद में रचनात्मक बहस और संवाद की आवश्यकता पर दिया जोर
उन्होंने हाल में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर उच्चतम न्यायालय के रुख की तरफ इशारा करते हुए कहा, कई ऐसी चुनौतियां हैं...जिसकी हम चर्चा नहीं कर सकते। जो चुनौती अपनों से मिलती है जिसका तार्किक आधार नहीं है, जिसका राष्ट्र विकास से संबंध नहीं है और जो राजकाज से जुड़ी हुई हैं। इन चुनौतियों का मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं।
 
उपराष्ट्रपति ने कहा, यह हमारा बाध्यकारी कर्तव्य है कि हमारी संवैधानिक संस्थाएं एक-दूसरे का सम्मान करें और यह सम्मान तभी होता है जब सभी संस्थाएं अपने-अपने दायरे में सीमित रहती हैं। हमारा लोकतंत्र तब फलता-फूलता नहीं है जब संस्थाओं के बीच टकराव होता है। संविधान इस बात की मांग करता है कि समन्वय हो, सहभागिता हो, विचार विमर्श हो, संवाद और वाद-विवाद हो।
ALSO READ: जगदीप धनखड़ विपक्ष से बोले, दिन रात केवल मेरे खिलाफ चल रहा अभियान
उन्होंने कहा, राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद पर टिप्पणी करना मेरे हिसाब से चिंतन का विषय है और मैंने इस बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है। सभी संस्थाओं की अपनी-अपनी भूमिका है। एक संस्था को दूसरी संस्था की भूमिका अदा नहीं करनी चाहिए। हमें संविधान का उसकी मूल भावना में सम्मान करना चाहिए।
 
धनखड़ ने कहा कि जिस तरीके से विधायिका विधिक फैसले नहीं ले सकती, यह न्यायपालिका का काम है, ठीक उसी तरीके से सभी संस्थाओं को अपने दायरे में सीमित रहना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा, मैं न्यायपालिका का सबसे ज्यादा सम्मान करता हूं। मैंने चार दशक से ज्यादा समय तक वकालत की है। मैं जानता हूं कि न्यायपालिका में प्रतिभाशाली लोग हैं। न्यायपालिका का बहुत बड़ा महत्व है। हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था कितनी मजबूत है, यह न्यायपालिका की स्थिति से परिभाषित होती है।
 
उन्होंने कहा, हमारे न्यायाधीश सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीशों में से हैं लेकिन मैं अपील करता हूं कि हमें सहयोग समन्वय और सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए। धनखड़ ने इससे पहले वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के एक आदेश पर टिप्पणी करते हुए इसका विरोध किया था।
 
उपराष्ट्रपति ने अभिव्यक्ति और वाद-विवाद को लोकतंत्र का अभिन्न अंग बताया लेकिन कहा कि जब अभिव्यक्ति करने वाला व्यक्ति खुद को ही सही माने और दूसरे को हर हाल में गलत, तो अभिव्यक्ति का अधिकार विकार बन जाता है। धनखड़ ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा, लोग यह कहते हैं की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है लेकिन ऐसा होता नहीं है।
ALSO READ: किसान आंदोलन पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के शिवराज से सवाल सरकार की साजिश: राकेश टिकैत
उन्होंने कहा, क्या हम आपातकाल को भूल गए? समय तो बहुत निकल गया है। आपातकाल की काली छाया आज भी हमको नजर आती है। वह भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय है। उन्होंने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ पुस्तक को लेकर बधाई दी और कहा, ऐसी पुस्तक लिखना आसान नहीं है और ईमानदारी से लिखना तो बहुत ही मुश्किल है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी