Electoral Bonds Scheme : देश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां चंदे से चलती हैं। चंदे की वजह से ही राजनीतिक दलों की आय निर्भर करती है, क्योंकि राजनीतिक दलों की आय का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बॉन्ड से ही आता है। आइए जानते हैं क्या होता है और कैसे काम करता है चुनावी बॉन्ड।
बता दें कि पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को 2 जनवरी 2018 को सरकार की ओर से अधिसूचित किया गया था। इसे नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाला चंदा अज्ञात स्रोत में गिना जाता है यानी चंदा देने वाले दानदाताओं की डिटेल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होती है।
सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाओं के जरिये चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है। मार्च में एक जनहित याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को अब तक कुल 12,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक प्रमुख राजनीतिक दल को गया है।
क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड क्या? : चुनावी बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र होता है, जिसे नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक किसी भी शाखा से खरीद सकती है। ये बॉन्ड नागरिक या कॉर्पोरेट अपनी पसंद के हिसाब से किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को डोनेट कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति या फिर पार्टी इन बॉन्ड को डिजिटल फॉर्म में या फिर चेक के रूप में खरीद सकते हैं। ये बॉन्ड बैंक नोटों के समान होते हैं, जो मांग पर वाहक को देने होते हैं।
कैसे काम करते हैं चुनावी बॉन्ड? : इलेक्टोरल बॉन्ड यूज करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं। ये आपको SBI की कुछ शाखाओं पर आपको मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकते हैं।