What is SIR of Election Commission: भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव हैं और इनकी जिम्मेदारी भारत निर्वाचन आयोग (ECI) पर है। बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) नामक एक प्रक्रिया ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। जहां विपक्ष इसे 'वोटबंदी' और अल्पसंख्यकों-गरीबों के खिलाफ साजिश करार दे रहा है, वहीं चुनाव आयोग इसे मतदाता सूची को शुद्ध करने की सामान्य प्रक्रिया बता रहा है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस प्रक्रिया के चलते बिहार में 35 लाख मतदाता सूची से बाहर हो जाएंगे।
आइए, इस लेख में विस्तार से समझते हैं कि SIR क्या है, इसे क्यों शुरू किया गया है, और बिहार में इस पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है?
आखिर क्या है चुनाव आयोग का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR)? : विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) चुनाव आयोग की एक प्रक्रिया है जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध किया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता सूची में केवल योग्य भारतीय नागरिकों के नाम ही शामिल हों। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं :
फर्जी मतदाताओं को हटाना : मृत व्यक्तियों, डुप्लीकेट प्रविष्टियों, गलत पते पर दर्ज नामों और अवैध प्रवासियों के नाम हटाए जाते हैं।
नए मतदाताओं को जोड़ना : 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले नए और योग्य मतदाताओं को सूची में शामिल किया जाता है।
बिहार में यह प्रक्रिया 24 जून 2025 को शुरू हुई थी। इसके तहत, बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं से गणना पत्र (Enumeration Form) भरवा रहे हैं। इस फॉर्म में मतदाताओं को अपनी व्यक्तिगत जानकारी जैसे नाम, पता, जन्मतिथि, आधार नंबर और वोटर पहचान पत्र नंबर दर्ज करना होता है। कुछ मामलों में 1987 से पहले का राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के जन्म से संबंधित दस्तावेज भी मांगे जा रहे हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची की जांच की जा रही है। गणना फॉर्म जमा करने की अंतिम तारीख 25 जुलाई 2025 है। इसके बाद, 1 अगस्त 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित होगी। मतदाता 1 सितंबर 2025 तक दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं, और अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी।
SIR क्यों शुरू किया गया: चुनाव आयोग का तर्क : चुनाव आयोग का कहना है कि बिहार में आखिरी बार इतनी गहन समीक्षा 2003 में हुई थी। इसके बाद कई कारणों से मतदाता सूची में अशुद्धियां बढ़ने की संभावना है, जिनमें प्रमुख कारण ये हैं:
प्रवास : बिहार से लोगों का अन्य राज्यों में जाना और अन्य राज्यों से लोगों का बिहार आना, जिससे मतदाता सूची में गलत पते या डुप्लिकेट नाम शामिल हो सकते हैं।
मृत्यु की गैर-रिपोर्टिंग : कई मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनकी जानकारी अपडेट नहीं हुई है।
नए मतदाता : 18 साल की उम्र पूरी करने वाले नए मतदाताओं को जोड़ने की आवश्यकता है।
अवैध प्रवासियों की आशंका : आयोग के सूत्रों के अनुसार, बिहार में SIR के दौरान घर-घर जांच में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए लोगों के नाम मतदाता सूची में पाए गए हैं, जिन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने इसे अपना संवैधानिक कर्तव्य बताया है। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत वयस्क मताधिकार के आधार पर निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
बिहार में बवाल क्यों, विपक्ष के आरोप और मुद्दे : बिहार में SIR को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। विपक्षी दल, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और AIMIM, ने इस प्रक्रिया को लोकतंत्र के खिलाफ साजिश करार दिया है। इस विवाद के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
दस्तावेजों की सख्ती : विपक्ष का कहना है कि SIR के तहत मांगे जा रहे दस्तावेज, जैसे 1987 से पहले का राशन कार्ड या माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र, गरीब और ग्रामीण लोगों के पास उपलब्ध नहीं हैं। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे नागरिकता साबित करने जैसा कदम बताया, जिससे अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को निशाना बनाया जा सकता है। कई मतदाताओं का कहना है कि उनके पास आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे बुनियादी दस्तावेज तो हैं, लेकिन पुराने दस्तावेजों की कमी के कारण उनके नाम कट सकते हैं।
चुनाव से पहले का समय : सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाया है कि चुनाव से ठीक पहले SIR क्यों शुरू किया गया। कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पहले शुरू होनी चाहिए थी ताकि पर्याप्त समय मिल सके। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया BJP और NDA को फायदा पहुंचाने के लिए शुरू की गई है, क्योंकि इससे विपक्ष के समर्थक वर्गों के वोट कट सकते हैं।