Election Commission new instructions in Bihar cause difficulty for voters: चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराए जाने के फैसले को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। चुनाव आयोग के इस सख्त आदेश का कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने विरोध किया। आरजेडी, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इन संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती है।
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को “बिहारी अस्मिता पर हमला” करार दिया है। 4 जुलाई 2025 को उन्होंने कहा कि पूरे देश में सिर्फ बिहारियों को ही अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ रही है? चाहे आप हिंदू हों, मुस्लिम हों, सिख हों, ईसाई हों या फिर सामान्य वर्ग, पिछड़ा, दलित या अति पिछड़ा वर्ग से हों, बिहार के हर व्यक्ति को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी होगी। तेजस्वी ने सवाल उठाया कि अगर मौजूदा मतदाता सूची फर्जी है, तो क्या 2025 से पहले बिहार में हुए सभी चुनाव भी फर्जी थे? उन्होंने इसे एक 'बड़ा षड्यंत्र' बताया और कहा कि इससे लगभग 4.5 करोड़ प्रवासी बिहारियों और गरीबों के वोटिंग अधिकार छिन सकते हैं। तेजस्वी ने यह भी चिंता जताई कि उनकी पत्नी, जो हाल ही में बिहार की मतदाता बनी हैं, का नाम भी सूची से हट सकता है, क्योंकि उनके पास जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेज नहीं हैं।
9 जुलाई को चक्का जाम : तेजस्वी ने 9 जुलाई 2025 को महागठबंधन द्वारा 'चक्का जाम' आंदोलन की घोषणा की है, ताकि इस “षड्यंत्र” के खिलाफ आवाज उठाई जा सके। उन्होंने चुनाव आयोग से पारदर्शिता की मांग की और सुझाव दिया कि आयोग एक डैशबोर्ड बनाए, जिसमें मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रगति की नियमित जानकारी दी जाए।
प्रक्रिया की खामियां और आलोचनाएं
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अव्यावहारिक समयसीमा : बिहार में मानसून और बाढ़ के समय यह प्रक्रिया शुरू की गई है, जब कई लोग मजदूरी के लिए बाहर होते हैं। इतने कम समय में दस्तावेज जुटाना असंभव है।
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दस्तावेजों की कमी : आधार और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को मान्य न करना गरीब, दलित, आदिवासी, और मुस्लिम समुदायों के लिए अन्यायपूर्ण है।
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प्रशासनिक कमियां : 80,000 बूथ लेवल अधिकारियों को केवल 3 दिन में प्रशिक्षित करना और हर घर तक पहुंचना अव्यावहारिक है।
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चुनावी दबाव : एडीआर और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इसे चुनावी दबाव में लिया गया फैसला बताया, जो बिहार विधानसभा चुनाव (नवंबर 2025) से ठीक पहले मतदाता सहभागिता को प्रभावित कर सकता है।
प्रभाव और चिंताएं : प्रो. जगदीप छोकर जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया से बिहार के 75-80% मतदाता वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। खासकर गरीब, पिछड़े, और प्रवासी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इससे न केवल मतदाता सहभागिता कम हो सकती है, बल्कि चुनाव परिणामों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं।