भोपाल। संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को संसद में पेश कर सकती है। मीडिया रिर्पोट्स के मुताबिक सदन में विधेयक लाने को लेकर सरकार ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है और सदन में विधेयक लाया जा सकता है। सदन के मौजूदा समीकरणों के हिसाब से सरकार अब विधेयक पर आम सहमति बनाना चाहती है और इसके लिए विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति या जेपीसी के पास भेज सकती है।
इससे पहले मोदी कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन-वन इलेक्शन कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे चुकी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह हमारे लोकतंत्र को अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह हमारे लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में अहम कदम होगा।
विधेयक को लेकर मोदी सरकार के सामने चुनौती-गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एक देश एक चुनाव कराने की बात प्रमुखता से कही थी। देश में एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए करीब 6 विधेयक लाने होंगे। इन सभी को संसद में पारित कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। वर्तमान में दोनों सदनों में एनडीए के पास साधारण बहुमत है। राज्य सभा में एनडीए के पास 112 और विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं, जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 164 वोटों की आवश्यकता होती है। वहीं लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं। जबकि लोकसभा में दो तिहाई बहुमत के लिए आंकड़ा 364 का है। ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा में किसी में भी सरकार के लिए दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना एक कठिन काम हो सकता है।
वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए तेजी से आगे बढ़ती मोदी सरकार के सामने कई चुनौतियां भी है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के सहयोगियों को इसके लिए सहमत करना है। दरअसल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन ने भले ही तीसरी बार सरकार बनाई हो लेकिन यह सरकार 2014 और 2019 की तुलना में बहुत अलग है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा को सदन में अकेले बल पर भी बहुमत प्राप्त था तो वहीं इस बार भाजपा सदन में अपने बल पर बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर है, ऐसे में इस बार उसे गठबंधन के सहयोगियों के भरोसे ही सरकार चलाना है।
ऐसे में जब सरकार में चंद्रबाबू की पार्टी तेलुगु देशम पार्टी और जेडीएस ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले है। ऐसे में जब यह दोनों सहयोगी दल दक्षिण भारत से आते है और वह सरकार में एक महत्वपूर्ण सहयोगी दल है, ऐसे में इनकी सहमति होना जरूरी है। ऐसे में जब गठबंधन सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पहले 100 दिन में कई बार अपने फैसलों से से पीछे भी हटना पड़ा है।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर दक्षिण भारत का विरोध?-अगर मोदी सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन को संसद में पास करवा लेती है, ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन को देश में 2029 के लोकसभा चुनाव में लागू किया जा सकता है। वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर दक्षिण भारत और उत्तर भारत के बीच एक दूरी भी दिखाई दे रही है। इसकी वजह 2029 में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए होना वाला परिसीमन है। परिसीमन में लोकसभा की सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 750 तक हो सकती है। ऐसे में 2029 का लोकसभा चुनाव लगभग साढ़े सात सौ सीटों के लिए हो सकता है।
परिसीमन में लोकसभा की सीटें दक्षिण भारत की जगह उत्तर भारत में अधिक संख्या में बढ़ सकती है, इसका कारण परिसीमन में जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या का निर्धारण होना है। दक्षिण भारत के राज्यों की तुलना में उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, ऐसे में यदि समान जनसंख्या के आधार पर सीटों पर निर्धारण होता है तो लोकसभा में दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व गिर सकता है, उत्तर भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व यानि सीटों की संख्या बढ़ेगी। यहीं कारण है कि लोकसभा सीटों को बढ़ाने में सबसे ज्यादा पेंच दक्षिण के राज्यों के विरोध का है। दक्षिण भारत के राज्य परिसीमन को लेकर आंशकित नजर आ रहे है और उन्होंने केंद्र के सामने अपनी चिंता जताई है।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर क्या है पार्टियों का रूख- वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन- भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अलावा अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल
विरोध में राजनीतिक पार्टियां-कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), तृणमूल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रमुक, नागा पीपुल्स फ्रंट और समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया। अन्य दलों में भाकपा (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया। राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) भी विरोध करने वाले राजनीतिक दलों में शामिल हैं।
इन पर्टियों ने साधी चुप्पी-भारत राष्ट्र समिति, तेलुगु देशम पार्टी,वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, जनता दल (सेक्युलर),इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू- कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस,झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), राष्ट्रीय जनता दल,राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट।