नाईक के पिता पेशे से फिजिशयन और शिक्षाविद थे, साथ ही वह 1994-95 के दौरान बॉम्बे साइकिएट्रिक सोसाइटी के प्रेसिडेंट भी रह चुके थे। नाईक के पिता अब्दुल करीम के अंतिम संस्कार में करीब 1500 लोग शामिल हुए जिनमें वकील, डॉक्टर, नेता, पत्रकार और कई बिजनेसमैन शामिल थे। स्थानीय पुलिस के साथ ही क्राइम ब्रांच की टीम भी कब्रिस्तान में मौजूद थी। जानकारी के मुताबिक जाकिर अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए जल्द ही भारत आ सकता है।
आइआरएफ (इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन) के मैनेजर मंजूर शेख के मुताबिक, 'डॉ. करीम ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पिछले दो दिनों से उनका ब्लड प्रेशर कम हो गया था और साथ ही उनके अंगों ने भी काम करना बंद कर दिया था। यह सब काफी जल्दी हुआ, जिसकी वजह से जाकिर अंतिम संस्कार में नहीं आ पाया।
बीते जुलाई महीने में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आतंकवादी हमले के बाद ये बात सामने आईं कि हमला करने वाले कुछ आतंकी कथित तौर पर जाकिर के उपदेशों से प्रेरित थे। उस वक्त जाकिर विदेश में थे और विवाद बढ़ने के बाद से अभी तक वह भारत नहीं आए हैं। जाकिर पर भड़काऊ भाषण देने के कई मामले दर्ज हैं। जाकिर नाईक पर आरोप है कि उसने हिन्दू देवी-देवताओं का अपनी कई तकरीरों में मजाक उड़ाया और खुलेआम हिन्दुओं को बरगला कर उनका धर्मान्तरण किया। जाकिर नाइक का एनजीओ आइआरएफ सुरक्षा एजेंसियों की नजरों में है, एजेंसियां एनजीओ की जांच कर रही हैं।