एक बहुत ही उपयोगी एवं सुपरिचित जड़ी है मुलहठी, जिसे अन्य बोलचाल में मुलेठी भी कहते हैं। यह दो वर्ष तक खराब नहीं होती और विभिन्न नुस्खों में औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है।
यह मधुर और शीतवीर्य होती है तथा किसी भी मौसम में प्रयोग की जा सकती है। इसका सत भी बनाया जाता है, जिसे सत मुलेठी या रुब्बे सूस कहते हैं।
मुलहठी का परिचय : इसका पौधा 6 फीट तक ऊंचा होता है। यूं तो यह भारत के जम्मू-कश्मीर और देहरादून में पैदा होती है फिर भी ज्यादातर विदेशों से आयात की जाती है। इस पौधे की जड़ बहुत मीठी होती है। इसकी जड़ और काण्ड (तना) को ही अधिकतर प्रयोग में लिया जाता है। यह लकड़ी जैसी होती है और इसका टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से मीठा लगता है।
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मुलहठी के गुण : यह शीतल, शीतवीर्य, भारी, स्वादिष्ट, नेत्रों के लिए हितकारी, बल तथा वर्ण के लिए उत्तम, स्निग्ध, वीर्यवर्द्धक, केशों तथा स्वर के लिए गुणकारी है। यह पित्त, वात एवं रुधिर विकार, व्रण, शोथ, विष, वमन, तृषा, ग्लानि तथा क्षय को नष्ट करने वाली है। नेत्रों के लिए फायदेमन्द, त्रिदोषनाशक और घाव को भरने वाली है।
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उपयोग : इसका उपयोग औषधियों में, मीठे जुलाब में, मीठी गोली, खांसी की गोली, बलवीर्यवर्द्धक नुस्खों में प्रायः होता ही है। आयुर्वेदिक योग मधुयष्टादि चूर्ण, यष्टादि क्वाथ, यष्टी मध्वादि तेल में इसका उपयोग होता है। इसे मुंह में रखकर चूसने से कफ आसानी से निकल जाता है, खांसी में आराम होता है, गले की खराश और स्वरभंग में लाभ होता है।
मुलहठी के विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- यष्टीमधु। हिन्दी- मुलहठी, मुलेठी। मराठी- ज्येष्ठीमध। गुजराती- जेठीमध। बंगाली- यष्टीमधु। तेलुगू- यष्ठीमधुकम। तमिल- अतिमधुरम। फारसी- वेख महक। इंग्लिश- लिकोरिस। लैटिन- ग्लिसीराइजा ग्लेब्रा।
रासायनिक संघटन : इसमें एक प्रमुख तत्व ग्लिसीराइजिन पाया जाता है जो ग्लिसीराजिक एसिड के रूप में रहता है। यह शकर से 50 गुना मीठा होता है। इसमें एक स्टिरॉयड इस्ट्रोजन भी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्लूकोज, सुक्रोज, मैनाइट, स्टार्च, ऐस्पैरेजिन, तिक्त पदार्थ, राल, एक प्रकार का उड़नशील तेल और एक रंजक तत्व पाया जाता है।