जानिए नवरात्रि में मां की आराधना ही क्यों होती है?
नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अलग-अलग रूपों में वह जगत मां के रूप में पूजी जाती है। लेकिन इससे एक सवाल जरूर उपजता है कि आखिर पितृ-सत्तात्मक समाज में मां की ही आराधना क्यों की जाती है, पिता की क्यों नहीं? दरअसल, हमारी कल्पनाओं में ईश्वर का भव्य स्वरूप होता है, उनकी महानता और सर्वोच्चता को सिर्फ मां की ममता से परिभाषित किया जा सकता है।
जिस प्रकार एक बच्चा अपनी मां में सारी खूबियां पा लेता है, ठीक उसी प्रकार हम उस ईश्वर को देवी यानी मां स्वरूप में देखते हैं। पूरी दुनिया में शायद हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर में मातृभाव को इतना महत्व दिया गया है। मां की सृजनात्मकता को पूरे संसार के सृजन से जोड़कर देखा जाता है।
साल में दो बार नवरात्रि पूजा की जाती है यानी गर्मियों की शुरुआत पर और फिर सर्दियों की शुरुआत में। मौसम में हो रहे ये बदलाव काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं और बदलाव के इन्हीं दो पड़ावों को दैवीय शक्ति की पूजा के लिए उपयुक्त माना गया है।
ऐसा माना जाता है कि दैवीय शक्ति पृथ्वी को वह ऊर्जा प्रदान करती है जिसकी वजह से वह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है जिससे बाहरी मौसम में इस प्रकार के बदलाव होते हैं। इस प्रकार प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए ही नवरात्रि का उत्सव उस दैवीय शक्ति को धन्यवाद देने के एक अवसर के रूप में मानते हैं। ऐसे उत्सव का माहौल होने से हम अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत दोनों को संतुलित कर पाते हैं।
उस सर्वोच्च शक्ति के विभिन्न स्वरूपों के आधार पर ही नवरात्रि को तीन-तीन के तीन अलग-अलग चरण में बांट सकते हैं। पूजा प्रारंभ होने के प्रथम तीन दिन देवी को शक्तिस्वरूप दुर्गा के लिए समर्पित करते हैं,
उसके अगले तीन दिन धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के लिए और अंतिम तीन दिनों को बुद्धि की देवी सरस्वती की आराधना के लिए समर्पित किया जाता है।
चूंकि देवी के तीनों रूपों की आवश्यकता इंसानों को जीवन में सफल होने के लिए होती है इसलिए लोग नवरात्रि के 9 दिनों तक देवी की पूजा-अर्चना करते हैं।
देवी के तीनों रूप और व्यक्तित्व पर प्रभाव
देवी के तीनों रूप और व्यक्तित्व पर प्रभाव
स्व-शुद्धिकरण : नवरात्रि के प्रथम तीन दिन मां के सबसे शक्तिशाली स्वरूप की पूजा की जाती है जिसमें लोग मां से यह प्रार्थना करते हैं कि वह अपने इस रूप में उनके अंदर मौजूद सारी अशुद्धियों या बुराइयों को दूर करें और उनकी अच्छाइयों को और मुखर करें।
स्व परिवर्तन : स्व शुद्धिकरण के बाद भक्त महालक्ष्मी से न केवल धन या भौतिक सुखों की कामना करता है, बल्कि आध्यात्मिक गुण स्थिर चित्त, शांति, धैर्य, दया और स्नेह की भावना से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त करता है। महालक्ष्मी की पूजा के बाद लोगों में एक सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है और वह आंतरिक खुशी पाने की ओर कदम बढ़ा पाता है।
स्व-ज्ञान : मां दुर्गा से शुद्धिकरण महालक्ष्मी से परिवर्तन के बाद इंसान की यही इच्छा शेष रह जाती है कि उसे बुद्धि ज्ञान और विवेक प्राप्त हो।