शारदीय नवरात्रि आश्विन माह की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है। इस वर्ष 2021 में 6 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के बाद 7 अक्टूबर गुरुवार को नवरात्रि का पर्व प्रारंभ होगा जो 15 अक्टूबर तक चलेगा। आओ जानते हैं घटस्थापना के मुहूर्त सहित अन्य 10 राज।
1. घट स्थापना मुहूर्त : घट स्थापना का समय या मुहूर्त प्रात:काल 06 बजकर 17 मिनट से 10 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 46 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। स्थानीय पंचांग भेद के अनुसार मूहूर्त में घट-बढ़ हो सकती है।
2. व्रत पारण समय : नवरात्रि का पारण 15 अक्टूबर को समय 6 बजकर 22 मिनट के बाद होगा।
शारदीय नवरात्रि के 10 राज :
1. डोली पर सवार होकर आ रही है माता जी : नवरात्रि के पर्व में इस बार माताजी डोली पर सवार होकर आएंगी। कहते हैं कि नवरात्रि की शुरुआत यदि सोमवार या रविवार को हो तो इसका अर्थ है कि माता हाथी पर सवार होकर आएंगी। शनिवार और मंगलवार को माता अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो तो माता डोली पर सवार होकर आती है।
2. क्या है संकेत : डोली पर सवार होकर आना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। मान्यता है कि ऐसे में राजनैतिक उथल-पुथल के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने की संभावना रहती है। यह भी कहा जा रहा है कि महामारी या संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है। हालांकि महिलाओं पर इसका बुरा असर नहीं होगा।
Gupta Navaratri 2021
3. वासंती नवरात्रि : चैत्र नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि भी कहते हैं। तुलजा भवानी बड़ी माता है तो चामुण्डा माता छोटी माता है। बड़ी नवरात्रि को बसंत नवरात्रि और छोटी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं। चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं इनमें भी देवी भक्त आश्विन नवरात्रि का बहुत महत्व है। इनको यथाक्रम वासंती और शारदीय नवरात्र कहते हैं। इनका आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है। ये प्रतिपदा 'सम्मुखी' शुभ होती है।
4. गरबा नृत्य : इस नवरात्रि में साधना के साथ ही पूरे देश में गरबा नृत्य करने की परंपरा भी है, जबकि अन्य तीन नवरात्रियों में ऐसा नहीं करते हैं।
5. माता का जगराता : कई लोग अपने घरों में माता का जागरण रखते हैं। खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल आदि प्रदेशों में किसी एक खास दि रातभर भजन-कीर्तन होते हैं।
6. पवित्र है ये रात्रियां : नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्र' अर्थात विशेष रात्रियों का बोध होता है। इन रात्रियों में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। दिन की अपेक्षा यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)
7. नौ देवियां : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। (दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।)
8. नौ भोग और औषधि : शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।
9. हवन : कई लोगों के यहां सप्तमी, अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का समापन होता है तब अंतिम दिन हवन किया जाता है।
10. विसर्जन : अंतिम दिन के बाद अर्थात नवमी के बाद माता की प्रतिमा और जवारे का विसर्जन किया जाता है।