हमारे सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। हिन्दू वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन, और माघ, मासों में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें दो नवरात्र को प्रकट एवं शेष दो नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है।
चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र में देवी प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती है वहीं आषाढ़ और माघ मास में की जाने वाली देवीपूजा "गुप्त नवरात्र" के अन्तर्गत आती है। जिसमें केवल मां दुर्गा के नाम से अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित कर या जवारे की स्थापना कर देवी की आराधना की जाती है।
यदा-कदा देखने में आया है कि गुप्त नवरात्र को लेकर श्रद्धालुओं के मन में कुछ संशय बना रहता है क्योंकि कुछ विद्वानों का मत है कि गुप्त नवरात्र में केवल दस महाविद्याओं की ही साधना की जाती है नौ देवियों की नहीं, हमारे मतानुसार यह मत उचित नहीं है क्योंकि नवरात्रि का पर्व देवी आराधना से सम्बन्धित पर्व है जिसमें दस महाविद्याओं की साधना के साथ ही जो श्रद्धालु नवदुर्गा की साधना करना चाहते हैं वे नौ दिनों के अनुसार देवी आराधना कर सकते हैं। गुप्त नवरात्रि में नवदुर्गा की पूजा-आराधना का कोई निषेध नहीं है किन्तु "गुप्त नवरात्रि" में दस महाविद्याओं की साधना को अधिक महत्त्व दिया जाता है। अत: श्रद्धालुगण अपनी-अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार गुप्त नवरात्रि में नवदुर्गा या दस महाविद्या की साधना इस अवधि में सम्पन्न कर सकते हैं।
वर्ष 2022 में 30 जून से आषाढ़ मास की "गुप्त-नवरात्रि" प्रारम्भ हो चुकी है। जानते हैं कि इस गुप्त-नवरात्रि में किस प्रकार देवी आराधना करना श्रेयस्कर रहेगा।
मुख्य रूप से देवी आराधना को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
1. घट स्थापना, अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित करना व जवारे स्थापित करना- श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्र का प्रारम्भ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी सम्भव नहीं तो केवल घट-स्थापना से देवीपूजा का प्रारम्भ किया जा सकता है।
2. सप्तशती पाठ व जप- देवी पूजन में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्त्व है। यथासम्भव नवरात्र के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए किन्तु किसी कारणवश यह सम्भव नहीं हो तो देवी के नवार्ण मन्त्र का जप यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए।
3. पूर्णाहुति हवन व कन्या भोज- नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह सम्भव ना हो तो देवी के "नवार्ण मन्त्र", "सिद्ध कुंजिका स्तोत्र" अथवा “दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र" से हवन सम्पन्न करना श्रेयस्कर रहता है।
कौन सी हैं 10 महाविद्याएं-
शाक्त परम्परा से जुड़े श्रद्धालुगण "गुप्त नवरात्रि" में जिन दस महाविद्याओं की साधना करते हैं वे हैं-काली, तारा, छिन्नमस्तिका, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से हैं। यहां यह बात जानना भी आवश्यक है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान इन सभी दस महाविद्याओं की साधना करना बड़ा ही दुष्कर कार्य होता है अत: अधिकांश साधकगण इन दस महाविद्याओं में से किसी एक महाविद्या की साधना इस अवधि में सम्पन्न करते हैं। शाक्त परम्परा से सम्बन्ध ना रखने वाले साधकगण "गुप्त नवरात्रि" की अवधि में नौ देवियों की साधना कर सकते हैं।