नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति की भक्ति, साधना और उपासना की जाती है। इन नौ दिनों में की गई साधना तुरंत ही फलदायी होती है। इसीलिए इन नौ दिनों में पवित्र रहकर और व्रत रखकर साधना की जाती है। साधना करने से सिद्धि भी मिलती है और मनोकामना भी पूर्ण होती है।
कैसे करें साधना?
नवरात्रि में कम से कम दोनों काल (प्रातः एवं सायं) में तीन घंटा समय निकाल कर 26 माला प्रति दिन नियमित समय पर जपना चाहिए। शौच स्नान से निवृत्त होकर शुद्धतापूर्वक प्रातःकालीन उपासना पूर्व मुख और संध्याकाल की उपासना पश्चिम मुख होकर करनी चाहिए। जप के समय घी का दीपक जलाकर रखें और जल का एक पात्र निकट में रखें।
प्रत्येक नवरात्रि में अलग-अलग साधनाएं की जाती है। साधना के पहले आपको यह भी तय करना होता है कि आप किस देवी की साधना करना चाहते हैं। जैसे, बगलामुखी देवी, काली माता, मां मातंगी या अम्बिका माता की साधना करना चाहते हैं या अन्य किसी की।
सामान्यजन माता के बीज मंत्र या शाबर मंत्रों का जाप कर सकते हैं। आप प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं। अष्टमी की रात्रि में दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक मंत्र को विधिवत सिद्ध किया जाता है। सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का 108 बार अष्टमी की रात्रि में पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
अधिकतर लोग इन दिनों शाबर मंत्र की सिद्धि करते हैं। कुछ लोग इन दिनों महामृत्युंजय मंत्र की साधना भी करते हैं। यदि आप तंत्र साधना करने का सोच रहे हैं तो इसके लिए आपको किसी योग्य गुरु की तलाश करनी चाहिए। यह एक अदभुत तांत्रिक साधना होती है अष्टनायिका साधना जिसे अर्धरात्रि में सिद्ध करते हैं। वर्ष में चार नवरात्रियां होती हैं।
जो साधक सावधान और एकाग्र चेतना से उपासना करता है, उसको धीरे-धीरे सिद्धियां प्राप्त होने लगती हैं। यदि कोई मनोकामना की पूर्ति हेतु साधना की जा रही है तो वह पूर्ण होती है। सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं। वर्ष की चारों नवरात्रियों में साधना करने से इसका परिणाम अति ही उत्सव पैदा करने वाला होता है।
साधना के नियम क्या हैं?
नवरात्रि साधना में ब्रह्मचर्य पालन बहुत जरूरी है। इसके अलावा एक समय ही भोजन ग्रहण करें या दोनों वक्त फल और दूध लेना भी उपवासवत् ही है। यथासम्भव नमक और मीठा (चीनी मिष्ठानादि) छोड़ दें। इसके अतिरिक्त, पूरा या नियमित समय तक मौन, भूमि-शयन, चमड़े की बनी वस्तु का त्याग, पशुओं की सवारी का त्याग, अपनी शारीरिक सेवाएं स्वयं करना तय करें। अपनी सुख-सुविधाओं को यथासम्भव त्याग कर उपासना में लीन होना ही तप है। पूजा या साधना का स्थान और समय भी नियुक्त होना चाहिए।