इस बार शारदीय नवरात्रि 9 के बजाय 8 दिनों की है। अर्थात 7 अक्टूबर से नवरात्रि प्रारंभ होगी और 15 को नवरात्रि का समापन हो जाएगा। इस बार कोई एक तिथि क्षय हो रही है। कुछ विद्वानों के अनुसार तृतीया और चतुर्थी एक साथ है तो कुछ के अनुसार चतुर्थी और पंचमी एक साथ है। अधिकत विद्वान चतुर्थी तिथि क्षय बता रहे हैं। आओ जानते हैं कौन सी तिथि कब प्रारंभ होकर कब समाप्त हो रही है।
1. तृतीया, चतुर्थी और पंचमी की माता ( Navratri Tritiya Chaturthi Tithi ) : तृतीया तिथि पर माता चंद्रघंटा, चतुर्थी पर मां कूष्मांड और पंचमी पर मां स्कंदमाता की पूजा होगी।
2. अमांत और पूर्णिमांत कैलैंडर में तिथियों को लेकर भिन्नता रहती है। स्थानीय पंचांग के अनुसार भी तिथियों में घट-बढ़ रहती है। जहां जिस स्थान पर जब चंद्रोदय होता है वहां उस स्थान के अनुसार तिथि प्रारंभ मान ली जाती है। उसी तरह सभी जगहों के सूर्योदय का समय भी भिन्न भिन्न है।
तिथियां :
1. तृतीया तिथि 09 अक्टूबर, 2021 शनिवार- आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया 7:49 Am तक तक मानी जा रही है इसके बाद चतुर्थी अगले दिन 4:55 am तक रहेगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कल की तिथि 10 अक्टूबर, 2021 रविवार- आश्विन शुक्ल पक्ष पंचमी (परसों 2:14 Am तक), उसके बाद षष्ठी |
2. शुक्ल पक्ष चतुर्थी ( क्षय तिथि ) 09 अक्टूबर को 07:49 AM से 10 अक्टूबर 04:55 PM तक रहेगी। तब पंचमी तिथि 10 अक्टूबर को 04:55 AM से 11 अक्टूबर 02:14 AM तक रहेगी।
शुभ मुहूर्त :
तृतीया का शुभ मुहूर्त:- अभिजीत मुहूर्त- 11:50 AM से 12:37 PM तक और अमृत काल- 08:47 AM – 10:15 AM तक रहेगा।
चतुर्थ का शुभ मुहूर्त:- अभिजीत मुहूर्त– 11:50 AM से 12:37 PM, अमृत काल– 08:47 AM से 10:15 AM और ब्रह्म मुहूर्त– 04:48 AM से 05:36 AM तक रहेगा।
पंचमी शुभ मुहूर्त:- अभिजीत मुहूर्त– 11:50 AM से 12:37 PM, अमृत काल– 04:47 AM से 06:16 AM, ब्रह्म मुहूर्त– 04:49 AM से 05:37 AM तक रहेगा।
प्रसाद :
1. नवदुर्गा का एक रूप है चंद्रघंटा। मां के इस रूप का पूजन नवरात्रि के तीसरे दिन होता है। इस दिन मां को दूध या दूध से बनी मिठाई खीर का भोग लगाकर ब्राह्मणों को दान करना शुभ होता है। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।
2. मां कूष्मांडा को नवरात्रि के चौथे दिन मालपुए का भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं। इस भोग को मंदिर के ब्राह्मण को दान करना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
3. पांचवे दिन मां स्कंदमाता को केले का नैवेद्य चढ़ाना बहुत उत्तम होता है। ऐसा करने से आपको उत्तम स्वास्थ्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
कैसे करें पूजा :
1. पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो भगवान का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।
2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने ईष्ट देवी मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
3. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवी के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
4. फिर देवी के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
6. अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
7. घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित ही करता है अत: आप ऑनलाइन भी किसी पंडित की मदद से विशेष पूजा कर सकते हैं। विशेष पूजन पंडित की मदद से ही करवाने चाहिए, ताकि पूजा विधिवत हो सके।