Sandhi puja time 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि 29 सितंबर 2025 को शाम 04:31 बजे से प्रारंभ होगी और 30 सितंबर 2025 को शाम 06:06 बजे समाप्त होगी। इस मान से जिन घरों में अष्टमी की रात को पूजा होती है और दिन में कन्या भोज होता है वे 29 तारीख को रात में पूजा करेंगे और जिन घरों में दिन ही पूजा होती है वे 30 सितंबर को अष्टमी मनाएंगे। उदयातिथि के अनुसार 30 सितंबर को अष्टमी रहेगी। इसी दिन संधि पूजा भी होगी।
शारदीय नवरात्रि 2025: 30 सितंबर मंगलवार दुर्गा अष्टमी मुहूर्त
अष्टमी- 29-09-2025 को 04:31 बजे से प्रारंभ।
अष्टमी- 30-09-2025 को शाम 06:06 बजे समाप्त।
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:37 से 05:25 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:47 से 12:35 तक।
विजय मुहूर्त: अपराह्न 02:10 से 02:58 तक।
संधि पूजा: शाम 05:42 से 06:30 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:08 से 06:32 तक।
निशीथ काल: रात्रि 11:47 से 12:35 तक।
क्या है संधि पूजा:-
अष्टमी के दिन ऐसा मुहूर्त होता है जबकि संधि पूजा होती है। अष्टमी और नवमी तिथि के संधि समय को संधि काल कहते हैं। अर्थात संधि पूजा अष्टमी तिथि की समाप्ति तथा नवमी तिथि के आरम्भ होने के समय बिन्दु पर की जाती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं। यह कुल 48 मिनट का एक शुभ मुहूर्त होता है।
कैसे करें संधि पूजा?
पूजा सामग्री: पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री तैयार रखें: 108 कमल के फूल (या लाल गुड़हल के फूल), 108 बेलपत्र, 108 मिट्टी के दीये, हवन के लिए सामग्री (आम की लकड़ी, घी, हवन सामग्री), चुनरी, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, और भोग (खीर, मिठाई, फल), एक विशेष बलि के रूप में कद्दू या केले का प्रयोग करें।
संधि पूजा विधि:-
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पूजा स्थल को साफ करके, वहाँ माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
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पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर पूजा का संकल्प लें।
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देवी का आह्वान करें और उनसे पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें।
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संधि काल शुरू होने पर, 108 दीये जलाएं। इन दीयों को पूजा स्थल के चारों ओर रखें।
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108 कमल के फूल (या लाल गुड़हल के फूल) एक-एक करके देवी को अर्पित करें।
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हर फूल अर्पित करते समय "ॐ दुं दुर्गायै नमः" मंत्र का जाप करें।
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इसके बाद देवी का षोडषोपचार पूजन करें। उन्हें प्रसाद अर्पित करें।
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फिर भूरा कद्दू को काटकर माता को अर्पित करें और अंत में आरती उतारें।
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आरती में माता महागौरी और सिद्धिदात्री दोनों की आरती करें।
नोट: अगर आप 108 फूल अर्पित नहीं कर सकते, तो अपनी श्रद्धा अनुसार 8, 16, या 24 फूल भी अर्पित कर सकते हैं।