शाकम्भरी नवरात्रि का महत्व: देवी शाकम्भरी, मां आदिशक्ति जगदम्बा का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हें शाकम्भरी नाम इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने संसार को शाक (सब्जियाँ) प्रदान कर अकाल और भुखमरी से मुक्ति दिलाई थी। मां शाकंभरी की पूजा से जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है। शाकम्भरी नवरात्रि के दौरान भक्तजन विशेष रूप से ताजे फल, सब्जियां और शाक को देवी को अर्पित करते हैं, जो उनकी कृपा प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।
इन दिनों साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं। ये मां ही माता अन्नपूर्णा, वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी, कामाख्या, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा और नैना देवी कहलाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी ने यह अवतार तब लिया, जब दानवों के उत्पात से सृष्टि में अकाल पड़ गया। तब देवी शाकंभरी रूप में प्रकट हुईं। इस रूप में उनकी 1,000 आंखें थीं। जब उन्होंने अपने भक्तों का बहुत ही दयनीय रूप देखा तो लगातार 9 दिनों तक वे रोती रहीं। रोते समय उनकी आंखों से जो आंसू निकले उससे अकाल दूर हुआ और चारों ओर हरियाली छा गई। हजारों आंख होने के कारण उन्हें मां शताक्षी भी कहते हैं।
जो भक्त इस दिनों गरीबों को अन्न-शाक यानी कच्ची सब्जी, भाजी, फल व जल का दान करता है उसे माता की कृपा प्राप्त होती है और वह पुण्य लाभ कमाता है।
मां शाकंभरी देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से मां रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। देश में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं। इनमें प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। दूसरा स्थान शाकंभर के नाम से राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप और तीसरा स्थान उप्र में मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर दूर है। माताजी का प्रमुख स्थल अरावली पर्वत के मध्य सीकर जिले में सकराय माताजी के नाम से विश्वविख्यात हो चुका है। यह मंदिर एपिग्राफिया इंडिका जैसे प्रसिद्ध संग्रह ग्रंथ में भी दर्ज है। शाकुम्भरी देवी का एक बड़ा मंदिर कर्नाटक के बागलकोट जिले के बादामी में भी स्थित है। समय-समय पर यहां की यात्रा का आयोजन होता है।