लखनऊ। करीब 5 हजार साल पुराने बाबा विश्वनाथ के शहर काशी में इस समय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी और कभी एक-दूसरे की जान के दुश्मन रहे कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय और उन्हें समर्थन दे रहे बहुचर्चित विधायक मुख्तार अंसारी की दोस्ती की ही चर्चा हो रही है।
आपराधिक छवि वाले इन दोनों राजनेताओं की दोस्ती किसी के गले से उतर नहीं रही है लेकिन कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यदि यह दोस्ती कायम रही तो इस क्षेत्र का गैंगवार थम सकता है।
राजनीतिक दलों का पहला और अंतिम लक्ष्य जीत माना जाता है। वे किसी भी कीमत और किसी भी जरिए से इसे हासिल करते हैं और इसके लिए सब कुछ जायज मानते हैं।
काफी दिनों से जेल में बंद आपराधिक छवि के बहुचर्चित विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल द्वारा कांग्रेस के दबंग उम्मीदवार अजय राय का समर्थन करने संबंधी किए गए ऐलान को लेकर शहर के लोगों में चर्चा का विषय है कि एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन एक कैसे हो गए?
वास्तव में वाराणसी के लोगों को मुख्तार अंसारी के दल का अजय राय को समर्थन करना हजम नहीं हो रहा। यहां के लोग मुख्तार और अजय राय की ताजी सियासी जुगलबंदी से भौचक हैं। अजय राय के भाई की हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी पर लगा था।
इस चुनाव के पहले तक ये दोनों एक-दूसरे खिलाफ थे, लेकिन अब वाराणसी में मोदी को शिकस्त देने के लिए एक-दूसरे के साथ हैं। दो दबंगों का यह साथ सिर्फ चुनाव तक के लिए है या बाद में भी रहेगा, इसे लेकर शहर के लोग एकमत नहीं हैं।
शहर के इस बदले माहौल को लेकर पूर्वांचल की राजनीति से जुडे अजय त्रिवेदी कहते हैं कि मुख्तार अंसारी ने अजय राय को समर्थन देने का राजनीतिक दांव अपने फायदे के लिए चला है।
अजय त्रिवेदी के अनुसार मुख्तार घोसी लोकसभा सीट तथा मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी बलिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इन दोनों सीटों पर राय (भूमिहार) मतदाताओं की संख्या काफी है जिनका वोट पाने के लिए मुख्तार अंसारी ने अजय राय को वाराणसी में समर्थन देने का दांव चला है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष के अनुसार पूर्वांचल में राजनीतिक दलों ने अपराधियों को अपना नेता मान लिया है। इस मामले में कोई दल अपवाद नहीं है। जिन अजय राय का समर्थन आज मुख्तार अंसारी कर रहे हैं, वे बीते लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर वाराणसी सीट से उम्मीदवार थे।
भाजपा के टिकट पर भी अजय राय विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं जबकि अजय राय के खिलाफ हत्या के प्रयास, हिंसा भड़काने, हमला करने सहित भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न थानों में कुल 16 मामले दर्ज हैं। उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट और गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई हो चुकी है। वे कई बार जेल भी गए।
अजय राय के विरोधी माने जाने वाले मुख्तार अंसारी जेल में हैं। वे जेल में रहते हुए भी चुनाव जीतते हैं और विधायक बन जाते हैं। 90 के दशक में अजय राय गैरराजनीतिक चेहरा थे। पूर्वांचल के गैंगवार में उनके भाई अवधेश राय की हत्या हुई जिसके बाद उनका भी नाम अपराध की दुनिया से जुड़ा।
वर्ष 1993 में वे भाजपा नेता कुसुम राय और तत्कालीन भाजयुमो अध्यक्ष रामशीष राय के संपर्क में आए। इन लोगों ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से स्नातक अजय राय को विद्यार्थी परिषद में शामिल कराया, फिर वर्ष 1996 में उन्होंने कोलअसला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा।
इस चुनाव में अजय राय ने 9 बार विधायक रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता कॉमरेड उंदल को हरा दिया।
भाजपा शासनकाल में वे प्रदेश के सहकारिता मंत्री भी बने। वर्ष 2009 में भाजपा से अनबन होने पर अजय राय ने पार्टी छोड़ी और सपा में शामिल हो गए। फिर वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर रहे।
बाद में उन्हें सपा भी छोड़नी पड़ी तो उन्होंने निर्दल प्रत्याशी के रूप में कोलअसला से चुनाव लड़ा और जीते। वर्ष 2010 में कांग्रेस में शामिल हुए और 2012 में कांग्रेस के टिकट पर पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते।
वे कहते हैं कि 4 मुकदमे मायावती सरकार के शासनकाल में उन पर राजनीतिक साजिश के तहत लगाए गए। ज्यादातर में उन्हें क्लीनचिट मिलने वाली है। पूर्वांचल के माफिया सरगना बृजेश सिंहे के करीबी माने जाने वाले अजय राय का पूर्वांचल के माफिया मुख्तार अंसारी से बैर रहा है। मुख्तार पर अजय राय के भाई की हत्या का आरोप है।
गाजीपुर जिले में जन्मे मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल का माफिया कहा जाता है। मुख्तार अंसारी के परिवार का गाजीपुर में सम्मान है। देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से मुख्तार अंसारी के पारिवारिक रिश्ते हैं।
मुख्तार के एक भाई देश के नामी पत्रकार हैं। देश की न्यायिक व्यवस्था से उनके परिवार का गहरा नाता रहा है। उनके दादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और उनके नाम पर दिल्ली में एक मार्ग है।
मऊ विधानसभा क्षेत्र से विधायक मुख्तार अंसारी पर पहली बार हत्या का आरोप वर्ष 1985 में लगा। मऊ दंगे के आरोपी मुख्तार पर हत्याओं का आरोप है। मुख्तार का आपराधिक संजाल पूर्वी उत्तरप्रदेश के गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, बलिया, गोंडा, फैजाबाद सहित कई जिलों में है।
उन पर गाजीपुर, वाराणसी, दिल्ली में हत्या, बलवा, अपहरण तथा सांप्रदायिकता फैलाने के लगभग डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। दिल्ली के कालकाजी थाने में प्रतिबंधित विदेशी शस्त्र रखने के आरोप में उन पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत कार्रवाई हो चुकी है।
विधायक कृष्णानंद की हत्या में भी पुलिस मुख्तार का हाथ मानती है। सुविधा देखकर राजनीतिक पाला बदलने में माहिर मुख्तार और भाई अफजाल अंसारी ने कौमी एकता दल गठित किया है। इस दल के बैनर तले ही मुख्तार ने बीते विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
खुद मुख्तार अंसारी ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। 2 दशक से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय मुख्तार अंसारी को राजनीतिक संरक्षण देने का साहस मुलायम सिंह यादव ने ही वर्ष 1993 में किया था।
मुख्यमंत्री रहते यादव ने इन पर से हत्या के 2 मुकदमों सहित कुल 4 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था। मुलायम सरकार गिरने के बाद जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने इन्हें जेल से छूटने पर जेड श्रेणी की सुरक्षा देने का आदेश दिया।
भाजपा शासनकाल में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मुख्तार अंसारी का आपराधिक तंत्र तोड़ने का काम किया। उनके जाने के बाद मुख्तार अंसारी ने किसी राजनीतिक दल से मोर्चा नहीं लिया। (वार्ता)