भूरा बाल साफ करो से लालू का क्या है कनेक्शन?- बिहार की सियासत में जातीय राजनीति के पुरोधा माने जाने वाले लालू यादव जब 1990 का विधानसभा चुनाव लड़ रहे तब पहली बार भूरा बाल साफ करो नारा चुनावी फिंजा में गूंजा था। राष्ट्रीय जनता दल से जोड़े गए भूरा बाल साफ करो के नारे का मतलब था भ से भूमिहार, रा से राजपूत, बा से ब्राह्मण, और ल से लाला यानि सवर्ण जातियों को सियासी और सामाजिक रूप से हाशिए पर धकेलना। इस नारे में बिहार में लालू यादव MY रणनीति (पिछड़ा-अति पिछड़ा-दलित-मुस्लिम) और जातीय राजनीति को नई धार दे दी थी और लालू यादव की पार्टी 15 साल तक सत्ता में काबिज रही। बिहार की राजनीति में एक समय ऐसा रहा है जब लालू यादव की छवि ओबीसी जातियों के सर्वमान्य नेता के तौर पर थी और ओबीसी समुदाय पूरी तरह एकजुट था।
भले ही भूरा बाल साफ करो का नारा लालू यादव से जोड़ा जाता रहा हो लेकिन खुद लालू ने इससे इंकार किया है। लालू ने अपनी आत्मकथा में इस नारे से इनकार करते हुए इसे मीडिया की साजिश बताया था। लालू यादव की आत्मकथा गोपालगंज से रायसीना किताब में उन्होंने सफाई दी है कि वे ब्राह्मण के खिलाफ नहीं हैं और न ही उन्होंने भूरा बाल साफ करो का नारा दिया था. लालू यादव ने उस किताब में लिखा है कि वह सिर्फ ब्राह्मणवाद और मनुवाद के खिलाफ हैं।
बिहार की राजनीति में पिछड़ी यानि ओबीसी जातियों का बहुत प्रभाव है। राजनीति दलों के लिए ओबीसी और दलित वोटर्स हमेशा एक बड़ा वोट बैंक रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जब आरजेडी ने राज्य में 75 सीटें जीती थी तो उसे ओबीसी वोटर्स का काफी सपोर्ट मिला था। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस का पूरा फोकस जातीय वोटरों को एकजुट करना है, इसलिए बिहार विधानसभा चुनाव में जातीय जनगणना जैसा मुद्दा भी खूब गूंज रहा है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा अब भूरा बाल साफ करो के नारे को लेकर आरजेड़ी पर हमलावर है। भाजपा ने इस पूरे मुद्दें पर लालू और तेजस्वी को घेरते हुए कहा कि आरजेडी आज भी 1990 के दशक में बिहार को दोबारा ले जाना चाहता है जो संभव नहीं है। भाजपा का आरोप है कि इस तरह के नारों और गलत भाषा का इस्तेमाल करके आरजेडी जनता की भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे ही है और बिहार को फिर जंगलराज की तरफ ले जाना चाहती है। ऐसे में चुनावी समय में एक बार फिर इस नारे का उभरना लालू यादव की पार्टी के लिए एक चुनौती बन सकता है।