कश्‍मीर मतदान : विरोधी-सुरक्षाधिकारी आमने-सामने

कश्मीर में दूसरे चरण के मतदान को लेकर चुनाव विरोधियों और सुरक्षाधिकारियों ने अब एक-दूसरे के विरुद्ध तलवारें भांज ली हैं। अगर चुनाव विरोधी चुनाव बहिष्कार के तहत अपने प्रदर्शनों तथा चुनाव विरोधी मुहिम को जारी रखने की कोशिशों में हैं तो सुरक्षाधिकारी उन्हें ऐसा करने से रोकने पर आमादा हैं।

लेकिन स्थिति यह है कि अलगाववादी नेताओं को हिरासत में लेने के बाद उन्हें रिहा करना पड़ रहा है ताकि स्थिति कहीं भयानक रूप न धारण कर ले।

कुछ दिन पहले ही कश्मीर रेंज के पुलिस महीनिरीक्षक ने इसे स्पष्ट किया था कि चुनाव बहिष्कार का आह्वान करने तथा लोगों को इसके लिए मजबूर करने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी और अब उन्होंने ऐसा करना आरंभ भी कर दिया है।

गैरसरकारी तौर पर तकरीबन 200 से अधिक अलगाववादियों तथा चुनाव बहिष्कार मुहिम के समर्थकों को हिरासत में लिया गया है। याद रहे कि सरकारी वक्तव्य उस समय सामने आया था, जब वरिष्ठ हुर्रियत नेता सईद अली शाह गिलानी ने कश्मीर में चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया था। वैसे ऐसा आह्वान वे 1996 से तभी से करते आ रहे हैं जबसे कश्मीर में आतंकवाद के लंबे दौर के उपरांत चुनाव करवाने की कवायद आरंभ की गई है।

दो दिन पहले भी सुरक्षाधिकारियों ने दर्जनों के हिसाब से अलगाववादी नेताओं और उनके समर्थकों को हिरासत में लिया था। इनमें शब्बीर अहमद शाह, यासीन मलिक भी शामिल थे जो अपनी चुनाव बहिष्कार मुहिम के सिलसिले में कश्मीर के विभिन्न भागों में रैलियों तथा प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए जा रहे थे। हालांकि बड़े नेताओं को तो बाद में रिहा कर दिया गया लेकिन कईयों के विरुद्ध मामले जरूर दर्ज कर लिए गए।

कश्मीर में चुनावों को सुचारु रूप से संपन्न करवाने की खातिर जी-तोड़ मेहनत में जुटे सुरक्षाधिकारियों के लिए इस बार के भी चुनाव ठीक वैसे ही चुनौतीपूर्ण हैं, जैसे कि पहले के चुनाव होते रहे हैं। हालांकि परिस्थिति में एक अंतर जरूर आया है कि हुर्रियत का एक धड़ा केंद्र सरकार के साथ बातचीत तो कर रहा है, मगर चुनाव बहिष्कार का आह्वान करने में वह भी सबके साथ सुर मिला रहा है।

यही कारण है कि कश्मीर में चुनाव समर्थक के साथ-साथ चुनाव विरोधी प्रदर्शनों, जुलूसों और रैलियों का जोर है। किसी रैली या फिर प्रदर्शन के प्रति दूर से अंदजा लगाना कठिन होता है कि वह चुनाव में भाग लेने के लिए आह्वान कर रहा है या फिर लोगों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रहने के लिए उकसा रहा है।

इतना जरूर है कि चुनाव समर्थक रैलियों के लिए अनुमति तो ली जाती है, मगर चुनाव विरोधी रैलियां अचानक ही आरंभ हो जाती हैं फिर जिनसे निपटने की मशक्कत सुरक्षाबलों को करनी पड़ रही है।

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