लगभग दो तिहाई लोकसभा सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है..अव्वल तो होना यह चाहिए था कि इस दौर में जुबानी जंग कुछ कुंद हो जाती...लेकिन ऐसा होने के बजाय उलटे और ज्यादा तीखी जंग हो रही है..दिलचस्प यह है कि इस जंग में एक तरफ कांग्रेस के प्रथम परिवार के तीनों महत्वपूर्ण शख्स हैं तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं।
मोदी पर पहला निजी हमला राहुल गांधी ने तब बोला, जब उन्होंने वडोदरा से अपने नामांकन के साथ दाखिल हलफनामे में अपनी उस पत्नी का जिक्र कर दिया, जिसके साथ वे विवाह के तत्काल बाद से ही नहीं रहते। उनकी पत्नी ने भी कभी आभासी बन चुके इस संबंध को लेकर सवाल नहीं उठाए और शिकवा-शिकायत भी नहीं की। उलटे वे इसे अपनी जिंदगी का निजी कोना मानती रहीं।
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यह बात और है कि बाद में राहुल गांधी ने उस हमले पर सफाई भी दी, जिसमें उन्होंने मोदी पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि जो अपनी पत्नी का नहीं हो पाया, वह देश को क्या संभाल पाएगा। लेकिन मोदी और गांधी नेहरू परिवार की लड़ाई अब उससे भी आगे बढ़ गई है। पिछले तीन दिनों में इस लड़ाई का कांग्रेस की तरफ से अगुआई प्रियंका गांधी कर रही हैं तो दूसरी तरफ मोदी उनके पति पर लगातार हमले कर रहे हैं।
प्रियंका के पति पर सवाल यह है कि किस तरह उन्होंने एक लाख रूपए की पूंजी से आठ साल में सवा तीन सौ करोड़ की संपत्ति खड़ी कर ली है। प्रियंका इसी बात से तिलमिलाई हुई हैं। यह बात और है कि वाड्रा पर यह सवाल उठाने वाले मोदी पहले शख्स नहीं है। वाड्रा की कमाई का यह सवाल सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर अरविंद केजरीवाल ने उठाया था। याद कीजिए, 2013 के शुरूआती दिनों में इस सवाल के उठाए जाने के बाद भी अपनी निष्पक्षता और निडरता का दावा करते रहने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से से यह खबर ही गायब थी।
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वैसे रॉबर्ट वाड्रा पर सवाल इससे भी पहले हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने अक्टूबर-नवंबर 2012 में उठाया था और उनके गुड़गांव के कई जमीन सौदों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। जिसका खामियाजा उन्हें हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा की अगुआई वाली सरकार के हाथों पहले तबादले और बाद में निलंबन के तौर पर भुगतनी पड़ी। तब भारतीय जनता पार्टी भी इस सवाल को उठाने से बच रही थी। तब माना जाता था कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे दोनों प्रमुख दलों के प्रथम-द्वितीय परिवारों में एक समझौता है कि एक-दूसरे पर निजी कीचड़ ना उछाले जाएं। शायद इस धर्म को दोनों ही दल और उनके प्रथम परिवार निभा रहे थे।
ऐसा नहीं कि तब भारतीय जनता पार्टी के निचले तबके के कुछ ज्यादा की आक्रामक और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता पार्टी की इस सोच की आलोचना करने से आपसी बातचीत में नहीं चूकते थे। तब यह ध्यान रखना चाहिए था कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पर मोदी का आज जैसा उदय नहीं हो पाया था।
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लेकिन मोदी के उदय के बाद से भारतीय जनता पार्टी की सोच में बदलाव आ गया है। अब उसे शीर्ष पर कीचड़ उछाल या सवाल दागने की अघोषित परंपरा को निभाने में दिलचस्पी नहीं रही। इसका असर निचले स्तर के उन उग्र कार्यकर्ताओं में देखा जा सकता है..वे इसका समर्थन कर रहे हैं।
मोदी की इस आक्रामकता के पीछे की वजहों को समझना आसान है। पिछले दस साल में वे लगातार कांग्रेस के निशाने पर रहे हैं। उन्हें साखहीन और कमजोर करने की कांग्रेस ने कम कोशिश नहीं की। कुछ कोशिशों को राजनीति से इतर की कोशिशों के तौर पर भी उनके कार्यकर्ता और समर्थक देखते हैं। हो सकता है कि मोदी की आक्रामकता के पीछे ये कारण भी रहे हों। शायद यही वजह है कि वे अपने आक्रमण से गांधी-नेहरू परिवार की साख की नींव पर गहरे तक चोट पहुंचाना चाहते हैं।
दूसरी तरफ प्रियंका ने मोदी पर लगातार हमले जारी रखे हैं। वे तो उस आरोप को भी उछालने में पीछे नहीं रहीं, जिस महिला जासूसी कांड के लिए मोदी हाल के दिनों में सवालों के घेरे में रहे। लेकिन अब तक उन्होंने वाड्रा पर लग रहे आरोपों का स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। बदले में वे उग्र आक्रमण कर रही हैं। उनकी आक्रामकता के बाद बीजेपी ने भी कम कस लिया और उसने दामाद श्री नाम से न सिर्फ एक फिल्म बना डाली, बल्कि उसने वाड्रा के बिजनेस पर सवाल उठाते हुए पुस्तिका भी जारी कर दी।
इस खबर से प्रियंका का नाराज होना स्वाभाविक ही है और उन्होंने पलटवार करने में देर नहीं लगाई। वैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी लगातार मोदी पर भी अडाणी को कौड़ी के भाव जमीन देने को लेकर सवाल उठा ही रहे हैं। यानी दोनों तरफ के महारथी जनता की अदालत में एक-दूसरे के साख पर बट्टा लगाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि चुनाव बाद अगर दोनों तरफ के महारथी मिलेंगे और सत्ता पक्ष-विपक्ष की भूमिकाओं के नाते उनका मिलना जरूरी भी होगा तो क्या इस अतीत को लेकर वे एक-दूसरे से संजीदगी से आंख मिला पाएंगे...सहज बातचीत कर पाएंगे...यह तो भविष्य बताएगा। लेकिन एक बात तय है कि आरोप और पलटवार की इस लड़ाई में दोनों तरफ ने अपनी संजीदगी जरूर खोई है। (लेखक टेलीविजन पत्रकार और स्तंभकार हैं)